Saturday, May 9, 2009
कौन बिकेगा, कौन नहीं?
मंदी का असर चारों तरफ है। इसने कला-जगत पर भी असर किया है। पहला असर तो यही है कि इसका बाजार ठंडा पड़ गया है। दूसरा असर ये हुआ है कि अब यह बहस चल पड़ी है कि कला बाजार में आकृतिमूलक (फिगरेटिव) चित्र ज्यादा पसंद किए जाएंगे कि अमूर्त(एब्स्ट्रेक्ट)।
वरिष्ठ चित्रकार बीआर बोदड़े का कहना है कि मंदी का असर कलाकारों पर भी पड़ा है और बड़े महानगरों की बड़ी आर्ट गैलरीज ने अपने शो स्थगित कर दिए हैं। जिन कलाकारों ने दो-तीन साल पहले से बुकिंग कर रखी थी वे ही अपने शो कर रहे हैं और नए शो प्लान नहीं किए जा रहे हैं। वे कहते हैं कि मंदी के पहले कला बाजार में जो बूम आया था उसमें हर तरह का काम बिका लेकिन अब स्थिति ज्यादा साफ होगी क्योंकि अब लोग फिगरेटिव पेंटिंग्स ज्यादा पसंद करेंगे। इसका अब भी मार्केट है और यह लंबे समय तक चलेगा। पैसा कमाने के लिए जो अमूर्त चित्रकार कला में कूद पड़े थे उन्हें निराशा हाथ लगेगी। आकृतिमूलक चित्रकारी करने वाले युवा चित्रकार बृजमोहन आर्य का कहना है कि फिगरेटिव पेंटिंग्स से लोग अपने को ज्यादा सहज तरीके से कनेक्ट कर लेते हैं। इस तरह की पेंटिंग्स उनके अनुभव संसार का हिस्सा ही जान पड़ती है इसलिए वह उन्हें आकर्षित करती है और वे इसे खरीदते हैं।
युवा अमूर्त चित्रकार मोहित भाटिया अपना अलग नजरिया पेश करते हैं। उनका मानना है कि मंदी का दौर अस्थायी है लेकिन महत्वपूर्ण और स्थायी बात यह है कि चित्रकारी बेहतरीन होना चाहिए। वे आकृतिमूलक चित्रकारी और अमूर्त चित्रकारी की बहस को निरर्थक मानते हैं और कहते हैं कि जो अच्छा काम करेगा वह बिकेगा। इसलिए जेनुइन कलाकार कभी भी उपेक्षित नहीं किए जा सकते।
वरिष्ठ चित्रकार ईश्वरी रावल कहते हैं कि यह बाजार तय नहीं कर सकता कि आकृतिमूलक चित्र ज्यादा बिकेंगे कि अमूर्त चित्र। बाजार किसी भी कला का सही मूल्यांकन नहीं कर सकता। खास बात यह है कि कलाकार अपने चित्रों में रमा है कि नहीं। और यह भी कि उसकी चित्रकला पर बाजार का दबाव तो नहीं। आज कई ऐसे अमूर्त चित्रकार हैं जो परंपरा से दीक्षित होकर नहीं आए हैं। उन्होंने सीधे ही अमूर्त चित्रकारी करना शुरू कर दिया है। मैं मानता हूं कि जो अमूर्त चित्रकार यथार्थपरक चित्रकारी से होकर गुजरा है उसके अमूर्त चित्र भी ज्यादा सुंदर होंगे। चूंकि खरीदार को कला की उतनी समझ नहीं होती इसलिए वह कई बार सिर्फ रंगों से ही प्रभावित होकर चित्र खरीद लेता है जबकि यह जरूरी नहीं कि वह चित्र अच्छा हो।
युवा चित्रकार राजीव वायंगणकर का कहना है कि अब जिन लोगों ने चित्रकारी की फैक्टरी लगा रखी थी उसे बंद करने का समय है। कुछ लोगों ने कलाकारों ने चित्रकारी का प्रोडक्शन शूरू कर दिया था और अपने चित्रों का उतना समय नहीं दिया जितने की दरकार थी। कई चित्रकारों ने बाजार की मांग के अनुसार चित्रकारी की है। उनका मानना है कि आकृतिमूलक बनाम अमूर्त चित्रकारी की बहस नकली औऱ बेकार है। वे तर्क देते हैं कि संगीत चाहे शास्त्रीय हो या सुगम, मायने इस बात के हैं कि वह सुर-ताल में है कि नहीं। यही बात चित्रकारी पर भी लागू होती है। यह बात मायने नहीं रखती कि चित्र आकृतिमूलक है या अमूर्त । मायने यह बात रखती है कि उसमें सुर-ताल है कि नहीं।
इमेजेसः
ईश्वरी रावल का अमूर्त चित्र
बृजमोहन आर्य की पेंटिंग संगीतकार
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1 comment:
jaanakariparak lekh...aabhar
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