Tuesday, December 23, 2008

धुंध से उठती धुन


हिंदी के अप्रतिम गद्यकार निर्मल वर्मा के लेखन में एक विरल धुन हमेशा सुनी जा सकती है। वह कभी मन के भीतर के अंधेरे-उजाले कोनों से उठती है, किसी शाम के धुंधलाए साए से उठती है या फिर आत्मा पर छाए किसी अवसाद या दुःख के कोहरे से लिपटी सुनाई देती है। मैं यहां उनकी डायरी का एक अंश प्रस्तुत कर रहा हूं और उस पर आधारित अपनी पेंटिंग भी। अपनी सुविधा के लिए मैंने इस डायरी के अंश का शीर्षक दे दिया है जो दरअसल उनकी ही एक किताब का शीर्षक भी है।

सितंबर की शाम, बड़ा तालाब।
देखकर दुःख होता है कि देखा हुआ व्यक्त कर पाना, डायरी में दर्ज कर पाना कितना गरीबी का काम है, कैसे व्यक्त कर सकते हो, उस आंख भेदती गुलाबी को जो बारिश के बाद ऊपर से नीचे उतर आती है, एक सुर्ख सुलगती लपट जिसके जलने में किसी तरह की हिंसात्मकता नहीं, सिर्फ भीतर तक खिंचा, खुरचा हुआ आत्मलिप्त रंग, तालाब को वह बांटता है, एक छोर बिलकुल स्याह नीला, दूसरा लहुलूहान और शहर का आबाद हिस्सा तटस्थ दर्शक की तरह खामोश सूर्यास्त की इस लीला को देखता है। पाट का पानी भी सपाट स्लेट है-वहां कोई हलचल नहीं-जैसे रंग का न होना भी हवा का न होना है, लेकिन यह भ्रम है, सच में यह हिलता हुआ तालाब है, एक अदृश्य गुनगुनी हवा में कांपता हुआ और पानी की सतह पर खिंचते बल एक बूढ़े डंगर की याद दिलाते हैं जो बार बार अपनी त्वचा को हिलाता है और एक झुर्री दूसरी झुर्री की तरफ भागती है, काली खाल पर दौड़ती सुर्ख सलवटें जो न कभी नदी में दिखाई देती हैं न उफनते ेसागर में हालांकि इस घड़ी यह तालाब दोनों से नदी के प्रवाह और सागर की मस्ती को उधार में ले लेता है लेकिन रहता है तालाब ही, सूर्यास्त के नीचे डूबी झील। मैं घंटों उसे देखते हुए चल सकता हूं, एक नशे की झोंक में औऱ तब अचानक बोध होता है-अंधेरा, गाढ़ा, गूढ़ मध्यप्रदेशीय अंधकार जिसमसें पलक मारते ही सब रंग आतिशबाजी की फुलझड़ी की तरह गायब हो जाते हैं और फिर कुछ भी नहीं रहता, सब तमाशा खत्म। रह जाती है एक ठंडी, शांत झील, उस पर असंख्य तारे और उनके जैसे ही मिनिएचरी अनुरूप पहाड़ी पर उड़ते चमकते धब्बे-भोपाल के जुगनू।
लेकिन यह डायरी तीन दिन बाद की है, कैसे हम उन्हें खो देते हैं जो एक शाम इतना जीवन्त, स्पंदनशील, मांसल अनुभव था-इज इट दि मिस्ट्री आफ पासिंग टाइम आर दि ट्रुथ आफ इटर्नल डाइंग?

Saturday, December 20, 2008

सर्द सन्नाटा है, तन्हाई है, कुछ बात करो


मैं क्यों बार-बार गुलज़ार साहब की ओर लौटता हूँ। उसमें हमेशा कोई दृश्य होता है, कोई बिम्ब होता है, बहुधा प्रकृति की कोई छटा होती है, लगभग मोहित करती हुई या मैं इसलिए उनकी तरफ लौटता हूँ कि उनमें मुझे हमेशा एक ताजगी या नयापन मिलता है, अपनी बात को कहने का एक शिल्पहीन शिल्प मिलता है।

क्या उनकी शायरी में सिर्फ रुमानीपन मिलता है जो मेरी खास तरह की सेंसेबिलिटी से मेल खाता है? क्या मैं उनकी कविता में किसी हसीन ख्वाहिश, मारू अकेलेपन या दिलकश खामोशी के वशीभूत लौटता हूँ? क्या उसमें स्मृतियाँ और स्मृतियाँ होती हैं, जिनकी गलियों और पगडंडियों से होकर गुजरते हुए हमेशा एक गीला अहसास होता है?

और ये अहसास भी ऐसे जैसे कोई खामोश मीठे पानी की झील हमेशा कोहरे से लिपटी रहती है? या कोई अपने में अलसाया पहाड़ को सिमटते कोहरे में बहते सब्जे से और भी सुंदर नजर आता है? या बनते-टूटते, खिलते-खुलते और सहमते-सिमटते रिश्तों का ठंडापन या गर्माहट है? या कि उनमें कोई जागते-सोते-करवट लेते ख्वाबों की बातें हैं? या कि सिर्फ अहसास जिन्हें रूह से महसूस करने की वे बात करते हैं? या कि इन सबसे बने एक खास गुलज़ारीय रसायन से बने स्वाद के कारण जिसका मैं आदी हो चुका हूँ?

शायद ये सब बातें मिलकर उनकी शायरी का एक ऐसा मुग्धकारी रूप गढ़ती हैं जिस पर मैं हमेशा-हमेशा के लिए फिदा हो चुका हूँ। इसीलिए इस बार संगत के लिए मैंने फिर से गुलज़ार की एक और नज़्म लैण्डस्केप चुनी है। यह भी एक दृश्य से शुरू होती है। दूर के दृश्य से। जैसे किसी फिल्म का कोई लॉन्ग शॉट हो। वे हमेशा अपनी बात को कहने के लिए कोई दृश्य खोजते हैं और खूबी यह है कि किसी में कोई दोहराव नहीं क्योंकि दृश्य को अपनी काव्यात्मक भाषा में रूपायित करने के लिए इसे बरतने का उनका तरीका अलहदा है, मौलिक है क्योंकि वे दृश्य को दृश्य नहीं रहने देते।

अपनी कल्पना के किसी नाजुक स्पर्श से, अपने भीतर उमड़ते-घुमड़ते किसी भाव या समय की परतों में दबी किसी याद से इतना मानीखेज़ बना देते हैं कि फिर वह दृश्य दृश्य नहीं रह जाता। यह उनकी खास शैली है जो उन्होंने रियाज से नहीं ज़िंदगी के तज़ुर्बों की निगाह से हासिल की है जो किसी शायर के पास ही हो सकती है।

यह नज़्म इन पंक्तियों से शुरू होती है-

दूर सुनसान से साहिल के क़रीब

इक जवाँ पेड़ के पास

इसमें साहिल है। यह दूर है। और वह सुनसान भी है। इसके पास एक पेड़ है, यह जवाँ है। दूर, सुनसान, साहिल, करीब और पेड़ जैसे सादा लफ्ज़ों से वे एक दृश्य बनाते हैं। लेकिन यह दृश्य यहीं तक सिर्फ एक दृश्य है। इसके बाद गुलज़ार की वह खास शैली का जादू शुरू होता है जिसे शिल्पहीन शिल्प कहा है। यानी कोई शिल्प गढ़ने की मंशा से आज़ाद होकर अपनी बात को इतने सादे रूप में कहना कि वह एक खास तरह के शिल्प में बदल जाए।

आगे की पंक्तियाँ पढ़िए-

उम्र के दर्द लिए, वक़्त का मटियाला दुशाला ओढ़े

बूढ़ा-सा पॉम का इक पेड़ खड़ा है कब से

यहाँ एक बूढ़े पॉम के पेड़ के जरिए एक व्यक्ति के अकेलेपन को कितनी खूबी से फिर एक दृश्य में पकड़ा गया है। यह पेड़ वक़्त का मटियाला दुशाला ओढ़े है। जाहिर है इस मटियालेपन में वक्त के बीतने का अहसास अपने पूरे रुमानीपन के बावजूद कितना खरा, खुरदरा और पीड़ादायी है। यह सदियों की खामोशी में अकेलेपन का गहरा अहसास है।

सालों की तन्हाई के बाद

झुकके कहता है जवाँ पेड़ से : 'यार

सर्द सन्नाटा है तन्हाई है

कुछ बात करो'

अब यह अकेलेपन का जो अहसास है, बहुत घना हो चुका है। और ऊपर से सर्द सन्नाटा है और तन्हाई है। जाहिर है यह सब कितना जानलेवा है। लेकिन खामोशी में सदियों के अकेलेपन को कहने की जो अदा है उसमें कोई चीख-पुकार नहीं है। जैसे बहुत ही गहरी एक आवाज़ है जो अपने पास खड़े एक जवाँ पेड़ से कुछ बात करने इच्छा जता रही हो।

यह एक पेड़ है जो सालों की तन्हाई में खड़ा है और झुक के कुछ बात करने के लिए कह रहा है। यह बात इतने सादा, इतने संयत और मैच्योर ढंग से कही गई है कि सीना चीर के रख देती है।

ना यह हमारी ही बात। हमारे अकेलेपन, हमारी खामोशी, हमारे सन्नाटे और हमारी तन्हाई की बात। इसे ध्यान से सुनिए, यह आपके कान में कही गई बात है, आपके दिल के किसी कोने से उठती बात है -

कि सर्द सन्नाटा है, तन्हाई है, कुछ बात करो।


पेंटिंगः रवीन्द्र व्यास

(वेबदुनिया के लिए लिखे जा रहे साप्ताहिक कॉलम संगत की एक कड़ी)

Wednesday, December 17, 2008

एक मारक, मोहक और मादक सम्मोहनः शकीरा


फिदा होना मेरी फितरत है और जिन पर फिदा हूं उनकी फेहरिस्त ज्यादा लंबी नहीं है। इस फेहरिस्त के छोटे-छोटे फासलों पर कुछ फनकार हैं जिनके फन में फनां होने का मन करता है। मैं दो कारणों से कोलंबिया पर फिदा हूं। यहां दो महान शख्सियतें हुईं। एक अदबी और दूसरी मौसिकी की। दोनों ही अपने फन के माहिर फनकार। दोनों की अदा सबसे अलहदा। दोनों ही जादुई। एक अपनी भाषा और कल्पना के जादुई यथार्थ या यथार्थ की जादुई कल्पना में जवां तो दूसरा अपने सुर और नाच में रवां। माय गॉड क्या हुनर पाया है दोनों ने। एक हैं हमारे गाबो यानी गैब्रियल गार्सिया मार्केज, हरदम अपनी कला के जिगर से भाषा, कल्पना और यथार्थ का ऐसा अद्भुत रसायन बनाते हुए जिसका आस्वाद ऐसा गूंगा बना देता है जिसने गुड़ चखा हो। और दूसरी हैं शकी यानी शकीरा। शकीरा इसाबेल मेबरिक रिपोल।

जहां गाबो अपने मैजिकल रियलिज्म के लिए मशहूर हैं तो दूसरी के बारे में मुझे कहने दीजिए अपने रियल मैजिकलिज्म के लिए।

मैं एक बार फिर शकीरा की ओर लौटा हूं। ३१ साल की जवानी में उसका जलवा इतना जानदार है कि वह जब थिरकती है तो लगता है एक कौंध मचलती-उछलती नाच रही है। उसकी थिरकन में बदन की बल खाती बिजलियां एक लपट की तरह आपको लपकने की कोशिश करती लगती हैं। उसका नाच एक अंतहीन आंच का आगोश है। उसकी आवाज आबशार की तरह आपको ठंडी राहत देती है तो कभी अंगारे की आंच का अहसास भी कराती है। कई बार उसकी आवाज अपनी मखमली अंगुलियों से आपकी रूह को गुदगुदाने लगती है तो कभी अंगुली पकड़कर आपको इश्क के बियाबान में भटकने के लिए छोड़ आती है। उसको गाते-नाचते देखता हूं तो उसके बदन की लयात्मक हरकत से ज्यादा उसकी उस कल्पनाशील रचनात्मकता पर फिदा होता हूं जिसके जरिए वह ऐसा मारक, मोहक और मादक सम्मोहन रचती है।

यह ऐसे ही संभव नहीं हुआ।

जब वह चार साल की थी उसके भाई की अचानक मौत हो जाती है। उसके लिए यह जीवन का पहला सदमा। चार साल की उम्र में इस सदमे से मिले दुःख को वह कविता में ढालती है और उसका यह दुःख कविता में कोंपल की तरह फूट कर अपनी नन्ही हथेलियां हिलाता है। आठ की होते-होते वह एक गीत रचती है, इसे अकेले में गुनगुनाती है। एक दिन अचानक एक रेस्त्रां में टेबल पर नंगे पांव नाचने लगती है। सब अवाक। ११ की उम्र में गिटार पर उसकी अंगुलियां फिसलने लगती है और फिजां में मीठी स्वर-लहरियां गूंजती हैं।

बस यहीं से वह सांगीतिक सफर शुरू होता है जिसमें सुंदर गीत हैं, दिल को छू लेने वाले बोल हैं, शांत और उद्दाम संगीत है और साथ ही चमत्कृत कर देने वाला लचकता नाच भी है। फिर क्या, शकीरा ने लिखी शोहरत के शिखर पर कामयाबी की नई इबारत। पैसों की झमाझम बारिश और आलीशान जीवन की चकाचौंध। आज वह कोलंबिया की सबसे ज्यादा धन कमाने वाली गायिका बन गई है। फोर्ब्स ने उसे दुनिया की चौथी सबसे अमीर गायिका घोषित किया है। वह ३८ मिलियन डॉलर सालाना कमाती है। फ्लोरिडा में साढ़े छह हजार फीट पर बना आलीशान भवन उसे अब छोटा लगता है।

वह रॉक एन रोल की दीवानी है, उसे अरेबिक संगीत मोह लेता है, बैली डांस की अदाएं उसकी प्रेरणाएं बनती हैं। वह द बीटल्स, द पोलिस, द क्योर और निर्वाणा जैसे बैंड से बेहद प्रभावित है। उसके संगीत और नाच में दुनियाभर के संगीत की खूबियों का संतुलित रसायन मिलेगा जिसका आस्वाद सिर्फ शकीरा के गीत-संगीत में ही पाया जा सकता है। वह तो कहती भी है कि मैं रॉक म्यूजिक से प्यार करती हूं लेकिन मेरे पिता सौ फीसदी लेबनानी हैं इसलिए मैं अरबी संगीत के स्वाद और ध्वनियों की भी दीवानी हूं। इन्हीं के प्रति मेरा प्रेम और लगाव कई बार मेरे संगीत में फ्यूजन की तरह गूंजता है।

एक प्रोड्यूसर मोनिका एरीजा ११ साल की उम्र में ही शकीरा के टैलेंट को ताड़ लेती हैं और विश्वविख्यात म्यूजिक कंपनी सोनी में आडिशन करवाती हैं। पहले आडिशन में वह फेल हो जाती है लेकिन कुछ समय के अंतराल के बाद उसे तीन एलबम का कॉन्ट्रेक्ट मिलता है। पहले दो एलबम मैजियो (१९९१), पेलिग्रो (१९९३) फ्लॉप हो जाते हैं लेकिन न्यू एस्त्रों रॉक एलबम में उसका योगदान उसे जबरदस्त कामयाबी दिलाता है और फिर तीसरा एलबम पेएस डेस्काल्जोस (१९९५) इतना हिट हो जाता है कि उसकी पचास लाख कॉपियां हाथों हाथ बिक जाती हैं। इसके बाद डोंड इस्तान लॉस लेड्रोंस से और बड़ा एक्सपोजर मिलता है। वह एमटीवी म्यूजिक और ग्रेमी अवॉर्ड हासिल करती है। इतनी ख्याति पाने के बाद उसका अब तक कोई इंग्लिश एलबम नहीं आता है। दुनियाभर के लोगों का दिल जीतने के लिए ग्लोरिया इस्टीफेन की मदद से अपना पहला इंग्लिश एलबम लाती है-लॉन्ड्री सर्विस। इसे अपार लोकप्रियता हासिल होती है। इसकी एक करोड़ तीस लाख कॉपियां बिक जाती हैं और जब २००६ में उसका दूसरा इंग्लिश एलबम अोरल फिक्सेशन (दो वाल्यूम में) आता है तो वह एक अमेरिकन और तीन ग्रेमी अवॉर्ड अर्जित करती है। इस एलबम के गीत हिप्स डोंट लाई तो वह ऐसा गाती और नाचती है कि दुनिया उस पर फिदा हो जाती है। उसका यह एलबम यूएस और यूके चार्ट में अव्वल नंबर पर आता है। इसके बाद शकीरा शकीरा, व्हेनएवर व्हेनएवर आदि गीतों को भी खूब शोहरत मिलती है।

२००७ में वह अपने ही हमवतन दिग्गज उपन्यासकार मार्केज के उपन्यास लव इन द टाइम अॉफ कॉलरा पर इसी नाम से बनी फिल्म में न केवल एक छोटी सी भूमिका निभाती है बल्कि दो गीत लिखती भी है और गाती भी है। वह ऐसी गायिका है जो अपने गीत खुद लिखती है या अपनी साथी गीतकार के साथ लिखती है। उसके गीत हजार तरह से प्रेम करने के लिए स्त्री की पुकार के गीत हैं। उसमें उद्दाम और कोमल इच्छाएं अभिव्यक्त होती हैं। उसके लिखे गीत की एक पंक्ति है-तुम ईश्वर के हाथों लिखे गए गीत हो। कई बार वह प्रेम से लबालब भरे गीतों को गाते हुए लगभग बदहवास सी नाचने लगती है। वह कहती है मेरे प्रशंसक सोचेंगे कि मैं न्यूरॉटिक हूं। मैं तो अॉब्सेसिव कम्पल्सिव परफेक्शनिस्ट हूं। यह उन्हें पसंद है या नहीं मुझे नहीं मालूम लेकिन इतना तय है कि वे मुझे ज्यादा समझने की कोशिश करेंगे। इससे वे समझ पाएंगे कि मेरी जिंदगी का मकसद क्या है? मैं किसके लिए लड़ रही हूं और वह क्या है जो मुझे प्रेरित करता है, मुझे गतिशील रखता है। मैं महसूस करती हूं ऐसा करके मैं अपने प्रशंसकों के और भी करीब आ जाती हूं, जो शायद इसके पहले संभव नहीं हुआ था।वह प्रेम में डूबी है और उसका प्रेम है अर्जेंटीना के भूतपूर्व राष्ट्रपति का बेटा।

खबर है कि वह इन दिनों इटैलियन गायक ताजियानो फैरो के साथ भी गाना गाने वाली है। हाल-फिलहाल वह कार्लोस संताना के साथ अपने नए एलबम इल्लिगल को बनाने में मसरूफ है।

उसका मानना है कि जिदंगी में ऐसे पल आते हैं जब जिंदगी खुद को सरल करती है और तब हम अपनी हथेलियों में भाग्य के बारे में कुछ भी नहीं पूछते। और हम फिर अपनी मनपसंद कविताएं पढ़ना शुरू करते हैं और कभी कभी अपनी कविताएं लिखने का साहस । हम हमेशा फिर-फिर प्रेम में डूबने लगते हैं...

दिलचस्प-दिलकश शकीरा

१।मैं सोचती हूं मेरे बदन का सबसे खूबसूरत अंग मेरा दिमाग है।

२। मुझे जेवर बिलकुल पसंद नहीं, मेरी सेहत ही मेरा जेवर है।

३। औरतें कभी संतुष्ट नहीं हो सकती क्योंकि पुरुषों के मुकाबले वे ज्यादा जटिल होती हैं।

४. मैं बिना मैकअप के घर से बाहर नहीं निकलती, आप जानते हैं, मैं एक महिला हूं।

शकीरा ः एक नजर

१। जन्म दो फरवरी १९७७ बेरेंक्विला (कोलंबिया)।

२। मां नीदिया रिपोल, लेबनानी पिता विलियम मेबरेक।

३। शकीरा का अरबी में अर्थ है-गरिमामयी स्त्री।

४। दुनिया की सौ सबसे हॉट सेलिब्रिटी में शामिल।

५। चैरिटी के जरिये उत्तरी कोलंबिया में गरीब बच्चों के स्कूल खोलना चाहती हैं।

६। यूनिसेफ की गुडविल एम्बेसेडर

७.स्पैनिश कंपनी के साथ कॉस्मेटिक्स प्रॉडक्ट्स की रेंज लांच की।

८. सन सिल्क के इंटरनेशनल एड में मैडोना और मर्लिन मुनरो के साथ।

९. हाइट पांच फुट दो इंच।

१०. वजन १०६ पौंड