Wednesday, July 30, 2008

गृहमंत्री की सफारी, मुख्यमंत्री का बटन

अहमदाबाद के विस्फोटों के बाद एक अस्पताल में उस बच्चे को टीवी पर रोते-कराहते आपने भी देखा होगा। दूसरे दिन कुछ अखबारों में उस बच्चे की फोटो भी छपी है। उसका पूरा बदन जख्मी था। रोता और कराहता हुआ। वह अकेला था। अपनी चीख, रुलाई और कराह से ही अपने दर्द को सहने की ताकत हासिल करता हुआ। वह इतना जख्मी था कि उसके बदन पर सिर्फ और सिर्फ पट्टियों बंधी थीं। उसके चेहरे पर भी जख्म के निशान थे और माथे पर भी पट्टी थी। क्या वह एक गैरजिम्मेदार राजनीति के कारण लहूलुहान हो चुके लोकतंत्र का एक रूपक हो सकता है? क्या उसे अपने ही स्वार्थ में डूबी राजनीति के बीच अकेली होती जाती जनता का प्रतीक माना जा सकता है? और उस उलटी पड़ी चप्पल का क्या अर्थ हो सकता है जो खून से लाल हो चुके बारिश के पानी में पड़ी थी। यह लगातार अकेले और असुरक्षित होते जाते नागरिक की दहशत थी, एक कहानी, एक चीखता बयान या फिर इस हाहाकारी समय पर एक टिप्पणी। और उसे क्या कहेंगे कि एक ठेले पर कुछ घायलों को तेजी से अस्पताल ले जाते कुछ जिम्मेदार युवा भी थे। उन्होंने किसी का इतंजार नहीं किया। बस इक चिंता थी कि इन घायलों को उनकी सांस बंद हो जाने के पहले अस्पताल पहुंचा दिया जाए। और उसके बाद टीवी के जरिये हमारे घरों में भी चीखें गूंज रही थीं।
और उधर? उधर हमारे गृहमंत्री थे। घायलों को देखने जाती सोनिया गांधी के पीछे-पीछे। गृहमंत्रीन थे शफ्फाक, सफेद सफारी में। एकदम सही नाप में सिली हुई। कलाई से लेकर शोल्डर तक। एकमद फिट। टीवी पर आपने भी देखा होगा, इस सफेद सफारी पर ही सफेद चमचम करते जूते भी थे। वे चल रहे थे, बहुत सावधानी से, सतर्क। बारिश के गंदले पानी और कीचड़ से बचते हुए। उनके साथ प्रधानमंत्री, पार्टी अध्यक्ष भी थे। सत्तर कारों का काफिला उनके साथ था। और एक मुख्यमंत्री भी था। सफेद दाढ़ी में दमदम करता एक लाल चेहरा था। पार्टी का दैदीप्यमान चेहरा। अपने राज्य को तेज गति से विकास के रास्ते ले जाता एक मुख्यमंत्री। वे भी घायलों को अस्पताल देखने गए तो कमांडो से घिरे हुए थे। उन्होंने अपने गले का बटन भी लगा रखा था। क्या उनके इस गले के बटन का कोई अर्थ आप निकाल सकते हैं। क्या यह बटन उन्हें अपने गिरेबान में झांकने से रोकता था? यह हमारा लोकतंत्र है। इसमें मंत्रीं सत्तर कारों के काफिले में होते हैं। एक मंत्री कमांडो से घिरा सुरक्षित रहता है। जनता हमेशा अकेली, जख्मी और कराहती हुई...