Wednesday, March 18, 2009

मालवा के रंगों से सराबोर होता गुलाबी शहर
















तो गुलाबी शहर इन दिनों मालवा के रंगों से सराबोर है। लगभग महिनेभर में जयपुर में इंदौर के कलाकारों की यह चौथी प्रदर्शनी है। प्रदर्शनियों की इस ताजा कड़ी में शामिल हैं वरिष्ट चित्रकार मीरा गुप्ता, मनीष रत्नपारखे, शबनम शाह, मूर्तिकार मुकुंद केतकर तथा रूपेश शर्मा। यह प्रदर्शनी 24 मार्च तक जारी रहेगी। कूची के कलाकारों की हौसला अफजाई के लिए सुरों के जादूगर उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन 22 मार्च को मौजूद होंगे।
वरिष्ठ चित्रकार मीरा गुप्ता एक बार फिर से अपने पारंपरिक कामों के जरिये मौजूद होंगी। उनके चित्रों में स्त्रियों की दुनिया का सुख-दुःख, उल्लास-उमंग बहुत ही सुंदर रूपाकारों में जीवंत हो उठा है। उनके इन कामों उनके धैर्य और संयम की झलक साफ देखी जा सकती है। वे पूरी तन्मयता से न केवल रंगों की चमकीली आभा पैदा करती हैं बल्कि आकृतियों को भी सधी लेकिन कोमल रेखाअो से अलंकृत करती हैं। उनके चित्रों को देखना ठेठ भारतीय सौंदर्य को महसूस करना है। मनीष रत्नपारखे अपने पांच अमूर्त चित्रों में अपनी स्मृतियों के प्रतिबिम्ब प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कैनवास पर छोटे-छोटे गोलाकार और लाल-नीले रंगों एकदूसरे से इंटरएक्ट करते हैं और इस तरह दो रूपों के बीच खूबसूरत स्पेस को क्रिएट करते हैं। ये रिपीटेटिव पैटर्न उन्हें रूपाकारों का एक खास मुहावरा देता है जो उनकी पहचान बनाता है। वे कहते हैं इन कैनवास पर इंदौर में उन दुकानों में देखे प्लास्टिक के अलग अलग साइज में मिलने वाले डिब्बे और ढक्कनों की स्मृतियां हैं। वे गोल आकार और रंग मेरी स्मृतियों में ही रच-बस गए हैं जो इनमें अनायास आ गए हैं। शबनम एक बार फिर काले रंगों में अलग अलग रूपों की विविधताएं खोजती लगती हैं। वे काले और सफेद रंगों की कई टोन्स वाली सतहें रचती हैं और इनसे बने अनंत में फॉर्म कीसी नक्षत्र की भांति बहते-डूबते लगते हैं। वे इस तरह से कुछ पैटर्न भी बनाती हैं जिनमें एक लय को पकड़ा जा सकता है।
मूर्तिकार मुकुंद केतकर अपने पुराने काम को नए आयाम देते दिखाई देते हैं। एक बार फिर वे अपने बचपन की स्मृतियों को इस निर्दोषता और भोलेपन से ढालते हैं कि हमारी समृतियां भी बरबस ही जीवंत हो जाती हैं। उनके ये मूर्तिशिल्प बचपन की दुनिया मे जाने का बंद दरवाजा खोल देते हैं और हम पाते हैं कि हम अपने ही आंगन या पड़ोंस में खेल-कूद रहे हैं। जाहिर है उनकी अंगुलियां अपनी सामग्री में बचपन को धड़कता आकार देती हैं। जबकि रूपेश शर्मा ने अपनी बुल सीरीज के तहत एक आक्रामकता और शक्ति को अभिव्यक्त किया है। उनके ये काम बताते हैं कि वे एक बल को अपने आकारों में जीवंत करने की कोशिश कर रहे हैं। वे कहते हैं -मैने कुछ काम मार्बल में भी किए हैं चूंकि मुझे बुल का बल लुभाता रहा है लिहाजा मैंने इसे ही रूपायित किया है।

1 comment:

Ek ziddi dhun said...

मुझे तो ये मुकुंद का मूर्तिशिल्प भा गया है और आप तो शानदार काम कर ही रहे हैं।