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Monday, April 6, 2009

बूंदें, पंखुड़ियां, रोटी और चुंबन



यह सचमुच जीवन की यात्रा है। अपने भ्रम और यथार्थ के साथ। भौतिकता और आध्यात्मिकता के साथ। प्रेम और भक्ति के साथ। भूख और प्यास के साथ। यहां आपको पानी की बूंदें, पंखुड़ियां, रोटी, प्रेम और चुंबन दिख जाएंगे। सुख-दुःख के जुड़वां चेहरे मिल जाएंगे लेकिन ये इतनी तल्लीनता और कलात्मक कौशल से रचे गए हैं कि आप गैलरी से बाहर निकलते हैं तो वे बूंदें, रोटी और चुंबन आपके साथ-साथ चले आते हैं। वे आपकी स्मृति में ठहर जाते हैं, धड़कते हैं और एकबारगी फिर हमें ये याद दिलाते हैं कि हमारी जिंदगी में इनके होने का कितना गहरा मतलब है।
यह सब देखा और महसूस किया जा सकता है दिल्ली के चित्रकार विजेंदर शर्मा की प्रदर्शनी जर्नी आफ लाइफ में। शनिवार को इंदौर में उनकी प्रदर्शनी शुरू हुई। पहली ही नजर में ये पेंटिंग्स जता देती हैं कि चित्रकार की यथार्थपरक शैली में काम करने की रियाज कितनी तगड़ी है। यही नहीं, ये पेंटिंग्स इस बात की भी गवाही देती हैं इन्हें किसी ध्यानस्थ अवस्था में बनाया गया है। यानी इसमें कलाकार की एकाग्रता, अपने माध्यम पर अचूक नियंत्रण और अपने सोच को अनुकूल आकृतियों और रंगों में ढालने की अद्भुत क्षमता के दर्शन भी होते हैं। चाहे पुजारी की भीगी धोती की सलवटें हो, पीठ और हाथों से फिसलती पानी की बूंदें हों, पंखुड़ियां या फिर चाहे सिंकी हुई रोटी हो या चुंबनरत जोड़ा इन्हें इस तरह रचा गया है कि ये चौंका देने की हद तक सच्ची लगती हैं। जाहिर है, वे सधी रेखाअों, अचूक आंतरिक दृष्टि, कल्पनाशील दिमाग और संवेदनशील रंगों से एक ऐसी दुनिया को रचते हैं जो एक साथ यथार्थ और भ्रम का अहसास कराती हैं। रोटी और लव शीर्षक की पेंटिंग उन्होंने प्रेम को प्रतीकात्मक ढंग से चित्रित किया है लेकिन रोटी को ठोस ढंग से। रोटी इतनी वास्तविक जान पड़ती है कि तंदूर से निकालकर अभी-अभी टांगी गई है। उसका आकर और आग के स्पर्श और आंच से बने सिंकने के निशान बताते हैं कि इस कलाकार में रचने का स्तुत्य धैर्य है। इसी तरह वर्शीपर शीर्षक पेंटिंग में भी पानी की बूंदों, पंखुड़ियों और सलवटों पर किया गया काम ध्यान खींचता है। लव इज अवर रिलीजन पेंटिंग अपने मैसेज की वजह से ज्यादा सार्थक है।
अन्य माध्यमों में भी उनकी कितनी तगड़ी रियाज है इसका उदाहरण है वाटर कलरटेम्परा में बनाया एमएफ हुसैन का चित्र। यह इतनी खूबी से बना है कि इसमें हुसैन के माथे की सलवटें, चेहरे की झुर्रियां और चांदी की तरह चमकते सफेद बाल एक किसी बेहतरीन फोटो की माफिक लगते हैं। वे इसे बेचना नहीं चाहते क्योंकि वे मानते हैं कि ऐसे चित्र बार बार नहीं बनाए जा सकते। इसी तरह उनके अधिकांश श्वेतश्याम ड्राइंग भी इसलिए खूबसूरत हैं कि ये अपनी मांसलता, ऐंद्रिकता और रोचक विषयों के कारण खासे आकर्षित करते हैं। इनमें मिस्टीरियस बैलेंस कमाल का जिसमें असंतुलित चट्टानो पर एक खास मुद्रा में निर्वस्त्र स्त्री बैठी हुई है। यह अपने टोन और टेक्सचर में भी दर्शनीय बन पड़ी है।
यह प्रदर्शनी 12 अप्रेल तक रोज दोपहर 12 से रात आठ बजे तक निहारी जा सकती है।
पुरस्कृत हो चुकी है बिग बैंग
गैलरी में सबसे ज्यादा आकर्षित करती है विजेंदर की पेंटिंग बिग बैंग। इसे नईदिल्ली में आल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट्स सोसायटी (आईफैक्स) द्वारा 5 से 30 मार्च तक आयोजित प्रदर्शनी में पहला पुरस्कार हासिल हुआ है। वस्तुत यह उस विचार पर आधारित है जब विज्ञान की दुनिया में एक घटना हुई थी जिसमें छोटे से पार्टिकल्स के टकराने से बड़ा भारी विस्फोट हुआ था। इसे बिग बैंग नाम दिया गया था। एक कलाकार किसी घटना को कितने मार्मिक और अलहदा निगाह से देखता है इसकी खूबसूरत मिसाल है बिग बैंग। इसी को आधार बनाकर विजेंदर ने दो गतिमय चेहरे बनाएं जो एकदूसरे का चुंबन ले रहे हैं। इनमें आवेग है, एक तड़प है, ये चेहरे एक गीले कपड़े से लिपटे हैं (जाहिर है यह एक भीगे अहसास का प्रतीक) और दुनिया का सबसे कोमल स्पर्श है है जिससे दूसरी तमाम बातें किसी विस्फोट से कम नहीं होतीं। उसे दुनिया के सबसे सुंदर फूल खिलते हैं, झरने खिलखिला उठते हैं और दूध की पवित्र नदी बहती है और यह धरती किलकारियो से गूंज उठती है। इसमें स्त्री का चेहरा और उसके हिस्से का कैनवास रोशनी से भरा है यानी चुंबन से स्त्री की दुनिया एक पवित्र रोशनी से भर गई है। जाहिर है यह अपनी कल्पना, कान्सेप्ट और रूपाकार के कारण अद्भत है। इस पेंटिंग को पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम आजाद खूब सराहा था।

रूप और रंगों में खिलता राग विजेंदर शर्मा की चित्रकारी चैनदारी की चित्रकारी है। यानी इसमें एक इत्मीनान है। रंगों और रेखाअों के बरताव में। विषय के साथ लगाव में। अपनी कल्पना को किसी बिम्ब या प्रतीक में ढालने में। यानी वे यदि कोई पीठ बना रहे हैं या गेंदे का फूल बना रहे हैं तो महसूस होता है कि कैनवास और चित्रकार के बीच एक रागात्मक संबंध बन रहा है। जैसे रंग को लगाने में चित्रकार एक आलाप ले रहा है। कोई जल्दबाजी नहीं, बल्कि रचने का धैर्य। लगता है जैसे उनके रूप और रंग में कोई राग खिल रहा है। नईदुनिया से बातचीत करते हुए वे कहते हैं कि मैं कैनवास चित्रित करते हुए संगीत सुनता हूं। इससे एक लय बनती है, ध्यान लगता है। और मैं फिर सब भूलकर रंगों में खो जाता हूं। तब कोई हड़बड़ी नहीं होती। बस मैं और मेरा कैनवास होता है।
वे कहते है बाहरी जीवन के साथ कलाकार की एक कलात्मक आंतरिक यात्रा जारी रहती है। वह बाहरी और भीतरी दुनिया से प्रभावित होकर अपने रूपाकार हासिल करता है। लेकिन खाली कैनवास के सामने मैं बिलकुल खाली होकर जाता हूं। मैं खाली कैनवास को निहारता हूं और उसमें फिर धीरे-धीरे मेरी कल्पना आकर लेती है। इसमें जीवन का भ्रम और यथार्थ एक साथ आते हैं। हमारे यहां तो जीवन को मिथ्या कहा गया है, माया कहा गया है। तो मैं जीवन के यथार्थ और भ्रम को चित्रित करने की कोशिश करता हूं।
मेरा ऐसा मानना है कि यदि ईश्वर ने यह दुनिया रचकर माया पैदा की है तो एक कलाकार भी माया चित्रित कर सकता है क्योंकि एक कलाकार भी आखिर ईश्वर का ही तो अंश है। लिहाजा मेरी चित्रकारी में आपको यथार्थ के साथ इस माया या भ्रम का भान होगा। अमूर्त और आकृतिमूलक चित्रकारी को लेकर होने वाली बहसों पर वे कहते हैं कि यह एक नकली बहस है। सब अपने अपने माध्यमों और शैली में चित्रकारी करते हैं। ये कुछ लोग हैं जो व्यर्थ की बहस कर अपना मजमा लगाना चाहते हैं। मैंने खुद अमूर्त शैली में काम किया है। और मैं मार्क राथको और सोहन कादरी जैसे अमूर्च चित्रकारों के काम को बेहद पसंद करता हूं। इन कलाकारों की एक बेहद साफ आंतरिक दृष्टि है, अपने माध्यम पर असंदिग्ध नियंत्रण है। और है एक स्थायित्व। इसीलिए ये जो बहस है वह नकली लड़ाई है।
उनका मानना है कि फिगरेटिव पेंटिंग करने में साधना की जरूरत होती है। डिटेल्स पर काम करना बहुत धैर्य मांगता है। कलात्मक कौशल चाहिए। मैने एक पेटिंग की थी सिक्रेट आफ लाइफ। ये इतनी रिअलि्स्टिक थी कि डॉ. कलाम ने इसमें बनी नॉट को खोलने की कोशिश की थी और चकित रह गए थे। पेंटिंग में यह कौशल हासिल करना आसानी से संभव नहीं है।

Wednesday, March 18, 2009

मालवा के रंगों से सराबोर होता गुलाबी शहर
















तो गुलाबी शहर इन दिनों मालवा के रंगों से सराबोर है। लगभग महिनेभर में जयपुर में इंदौर के कलाकारों की यह चौथी प्रदर्शनी है। प्रदर्शनियों की इस ताजा कड़ी में शामिल हैं वरिष्ट चित्रकार मीरा गुप्ता, मनीष रत्नपारखे, शबनम शाह, मूर्तिकार मुकुंद केतकर तथा रूपेश शर्मा। यह प्रदर्शनी 24 मार्च तक जारी रहेगी। कूची के कलाकारों की हौसला अफजाई के लिए सुरों के जादूगर उस्ताद अहमद हुसैन-मोहम्मद हुसैन 22 मार्च को मौजूद होंगे।
वरिष्ठ चित्रकार मीरा गुप्ता एक बार फिर से अपने पारंपरिक कामों के जरिये मौजूद होंगी। उनके चित्रों में स्त्रियों की दुनिया का सुख-दुःख, उल्लास-उमंग बहुत ही सुंदर रूपाकारों में जीवंत हो उठा है। उनके इन कामों उनके धैर्य और संयम की झलक साफ देखी जा सकती है। वे पूरी तन्मयता से न केवल रंगों की चमकीली आभा पैदा करती हैं बल्कि आकृतियों को भी सधी लेकिन कोमल रेखाअो से अलंकृत करती हैं। उनके चित्रों को देखना ठेठ भारतीय सौंदर्य को महसूस करना है। मनीष रत्नपारखे अपने पांच अमूर्त चित्रों में अपनी स्मृतियों के प्रतिबिम्ब प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कैनवास पर छोटे-छोटे गोलाकार और लाल-नीले रंगों एकदूसरे से इंटरएक्ट करते हैं और इस तरह दो रूपों के बीच खूबसूरत स्पेस को क्रिएट करते हैं। ये रिपीटेटिव पैटर्न उन्हें रूपाकारों का एक खास मुहावरा देता है जो उनकी पहचान बनाता है। वे कहते हैं इन कैनवास पर इंदौर में उन दुकानों में देखे प्लास्टिक के अलग अलग साइज में मिलने वाले डिब्बे और ढक्कनों की स्मृतियां हैं। वे गोल आकार और रंग मेरी स्मृतियों में ही रच-बस गए हैं जो इनमें अनायास आ गए हैं। शबनम एक बार फिर काले रंगों में अलग अलग रूपों की विविधताएं खोजती लगती हैं। वे काले और सफेद रंगों की कई टोन्स वाली सतहें रचती हैं और इनसे बने अनंत में फॉर्म कीसी नक्षत्र की भांति बहते-डूबते लगते हैं। वे इस तरह से कुछ पैटर्न भी बनाती हैं जिनमें एक लय को पकड़ा जा सकता है।
मूर्तिकार मुकुंद केतकर अपने पुराने काम को नए आयाम देते दिखाई देते हैं। एक बार फिर वे अपने बचपन की स्मृतियों को इस निर्दोषता और भोलेपन से ढालते हैं कि हमारी समृतियां भी बरबस ही जीवंत हो जाती हैं। उनके ये मूर्तिशिल्प बचपन की दुनिया मे जाने का बंद दरवाजा खोल देते हैं और हम पाते हैं कि हम अपने ही आंगन या पड़ोंस में खेल-कूद रहे हैं। जाहिर है उनकी अंगुलियां अपनी सामग्री में बचपन को धड़कता आकार देती हैं। जबकि रूपेश शर्मा ने अपनी बुल सीरीज के तहत एक आक्रामकता और शक्ति को अभिव्यक्त किया है। उनके ये काम बताते हैं कि वे एक बल को अपने आकारों में जीवंत करने की कोशिश कर रहे हैं। वे कहते हैं -मैने कुछ काम मार्बल में भी किए हैं चूंकि मुझे बुल का बल लुभाता रहा है लिहाजा मैंने इसे ही रूपायित किया है।