इसके लिए कला ही नहीं, जिगर भी चाहिए कि कोई कलाकार, कला बाजार में नए से नए चलन से प्रभावित हुए बिना अपनी बनाई लीक पर सधे कदमों से निरंतर चलता रहे। और यह भी कि अपनी बरसों पुरानी शैली को बरकरार रखे हुए रचनात्मक भी बना रहे। जाहिर है, यह अपनी शैली में गहरे आत्मविश्वास और आस्था का परिणाम है। यह कलाकार की अपनी कला और रंगों के प्रति निष्ठा की मिसाल है। ये चित्रकार हैं इंदौर के वरिष्ठतम चित्रकार श्रेणिक जैन। तीन मार्च को देवलालीकर कला वीथिका में चित्रकार मीरा गुप्ता उन्हें विशेष अवॉर्ड से सम्मानित करेंगी। इस मौके पर श्री जैन की तीन मार्च से लेकर छह मार्च तक चित्र प्रदर्शनी भी होगी।
श्री जैन के चित्रों की खासियत यह है कि वे पहली ही नजर में सौंदर्यानुभूति जगाते हैं। वे खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव के साथ ही रंगों का नैसर्गिक सौंदर्य रचते हैं। उनकी रंग योजना मनोहारी होती है। कभी नारंगी और पीले, कभी नीले और हरे और कभी कभार चटख लाल के साथ धूसर की लयात्मक रंग संगति मन मोह लेती है। उनका यह कलात्मक धैर्य एक बहुरंगी स्वप्निल दुनिया को चित्रित करता है। लगता है उनका कला-मर्म प्राकृतिक सुंदरता की रंग छटा, नदी-पेड़ों-पहाड़ों-मंदिरों के साथ ही जानवरों और मनुष्य की उपस्थिति से स्पंदित होता है। वे कहते हैं-मैंने रंगों से लगाव एनएस बेंद्रे से सीखा और काम के प्रति लगन डीजे जोशी से। मैं जमाने के साथ बहता नहीं, अपने मन के साथ अपनी उर्वर कला जमीन पर स्थिर रहता हूं। इसी जमीन पर खड़े होकर मैं अपनी कल्पना के रंगों का वितान रचता हूं। पहले बहुत घूमा और लैंडस्केप किए। अब उम्रदराज होने के कारण घूम नहीं पाता और इसीलिए अब माइंडस्केप करता हूं। यानी देखे गए दृश्य और जगहें मेरी स्मृति में बार बार लौटते हैं और एक कला अनुभव में रूपांतरित होते हैं। ये काल्पनिक हैं इसलिए मैं अपने इन चित्रों को अब माइंडस्केप कहता हूं। लेकिन हो सकता है कि ये आपको देखी गई जगहों का एक वास्तविक आभास देतीं भी लगें।
वे पिछले 25 सालों से एक्रिलिक माध्यम में अपने ये विविधवर्णी कैनवास रच रहे हैं। उनके चित्रों की अब तक एक दर्जन एकल नुमाइश हो चुकी हैं, और कई समूह प्रदर्शनियों में शिरकत कर चुके हैं। कुछ नेशनल आर्ट कैम्प में भी हिस्सा ले चुके हैं। वे मप्र के शिखर सम्मान के साथ कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। वे कहते हैं- मैं समकालीन कला के तमाम ट्रेंड्स देखता हूं और उनका आनंद लेता हूं लेकिन उनसे प्रभावित नहीं होता। न इसकी कभी कोशिश की और न कभी करूंगा। मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में उनकी पहली प्रदर्शनी में एनएस बेंद्रे ने यह टिप्पणी की थी कि श्री जैन के चित्रों में भारतीय और यूरोपीय चित्रकला की खासियतें भी हैं और वे स्वप्निल ढंग से अपने चित्रों को रचते हुए अपनी मौलिकता आविष्कृत करते हैं। श्री जैन कहते हैं कि एक ही शैली में काम करने से मन अघाया नहीं लेकिन यदि मेरी चित्रकला में कोई बदलाव आया भी तो वह सायास नहीं, स्वतःस्फूर्त ही होगा। मैं आज भी रोज दो-तीन घंटे रियाज करता हूं। मेरा मन अक्सर देहाती या प्राकृतिक वातावरण वाली चित्रकृतियों को बनाने में रमता है। पुरस्कार मिलने पर वे कहते हैं, असल पुरस्कार संतोष देते हैं लेकिन सन् 57 में 26 साल की उम्र् में मुझे एकेडमी आफ फाइन आर्ट कलकत्ता का जो स्वर्ण पदक मिला था वैसा रचनात्मक संतोष मुझे आज तक नहीं मिला।
श्री जैन के चित्रों की खासियत यह है कि वे पहली ही नजर में सौंदर्यानुभूति जगाते हैं। वे खूबसूरत प्राकृतिक वातावरण के प्रभाव के साथ ही रंगों का नैसर्गिक सौंदर्य रचते हैं। उनकी रंग योजना मनोहारी होती है। कभी नारंगी और पीले, कभी नीले और हरे और कभी कभार चटख लाल के साथ धूसर की लयात्मक रंग संगति मन मोह लेती है। उनका यह कलात्मक धैर्य एक बहुरंगी स्वप्निल दुनिया को चित्रित करता है। लगता है उनका कला-मर्म प्राकृतिक सुंदरता की रंग छटा, नदी-पेड़ों-पहाड़ों-मंदिरों के साथ ही जानवरों और मनुष्य की उपस्थिति से स्पंदित होता है। वे कहते हैं-मैंने रंगों से लगाव एनएस बेंद्रे से सीखा और काम के प्रति लगन डीजे जोशी से। मैं जमाने के साथ बहता नहीं, अपने मन के साथ अपनी उर्वर कला जमीन पर स्थिर रहता हूं। इसी जमीन पर खड़े होकर मैं अपनी कल्पना के रंगों का वितान रचता हूं। पहले बहुत घूमा और लैंडस्केप किए। अब उम्रदराज होने के कारण घूम नहीं पाता और इसीलिए अब माइंडस्केप करता हूं। यानी देखे गए दृश्य और जगहें मेरी स्मृति में बार बार लौटते हैं और एक कला अनुभव में रूपांतरित होते हैं। ये काल्पनिक हैं इसलिए मैं अपने इन चित्रों को अब माइंडस्केप कहता हूं। लेकिन हो सकता है कि ये आपको देखी गई जगहों का एक वास्तविक आभास देतीं भी लगें।
वे पिछले 25 सालों से एक्रिलिक माध्यम में अपने ये विविधवर्णी कैनवास रच रहे हैं। उनके चित्रों की अब तक एक दर्जन एकल नुमाइश हो चुकी हैं, और कई समूह प्रदर्शनियों में शिरकत कर चुके हैं। कुछ नेशनल आर्ट कैम्प में भी हिस्सा ले चुके हैं। वे मप्र के शिखर सम्मान के साथ कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं। वे कहते हैं- मैं समकालीन कला के तमाम ट्रेंड्स देखता हूं और उनका आनंद लेता हूं लेकिन उनसे प्रभावित नहीं होता। न इसकी कभी कोशिश की और न कभी करूंगा। मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में उनकी पहली प्रदर्शनी में एनएस बेंद्रे ने यह टिप्पणी की थी कि श्री जैन के चित्रों में भारतीय और यूरोपीय चित्रकला की खासियतें भी हैं और वे स्वप्निल ढंग से अपने चित्रों को रचते हुए अपनी मौलिकता आविष्कृत करते हैं। श्री जैन कहते हैं कि एक ही शैली में काम करने से मन अघाया नहीं लेकिन यदि मेरी चित्रकला में कोई बदलाव आया भी तो वह सायास नहीं, स्वतःस्फूर्त ही होगा। मैं आज भी रोज दो-तीन घंटे रियाज करता हूं। मेरा मन अक्सर देहाती या प्राकृतिक वातावरण वाली चित्रकृतियों को बनाने में रमता है। पुरस्कार मिलने पर वे कहते हैं, असल पुरस्कार संतोष देते हैं लेकिन सन् 57 में 26 साल की उम्र् में मुझे एकेडमी आफ फाइन आर्ट कलकत्ता का जो स्वर्ण पदक मिला था वैसा रचनात्मक संतोष मुझे आज तक नहीं मिला।
4 comments:
बेहतरीन चित्र लगाया है आपने रवीन्द्र भाई और उम्दा आलेख. धन्यवाद श्रेणिक जैन साहेब से तआर्रुफ़ करवाने का! उनकी और कृतियां भी लगाऎं समय मिलने पर.
श्रेणिक जैन जी से परिचय कराने और उनकी कलाकृति को यहाँ लाने का आभार.
srenik jain ji par apane bahut achchha likha. unahe badhai.
apako dhanywaad.
रवींद्र भाई, कला की समीक्षा आपकी नज़र से पढ़ते हैं और इस तरह इस दुनिया की तमीज न होने पर भी कुछ तो पल्ले पड़ ही जाता है. पहली नज़र चित्र पर पड़ती है और वो बेशक दिल पर जादू कर देता है. ब्यूटीफुल..
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