असँख्य तारे हैं
जिनमें तुम्हारी आँखों की चमक है
और चंद्रमा भी
जो तुम्हारी अँगूठी की तरह
रात की अँगुली में जगमग है
और अधखिले फूल भी हैं इतने
जो तुम्हारी जुल्फों में खिल जाने के लिए बेताब हैं
और इतने नक्षत्र हैं
जिनके दुपट्टों में तुम्हारे ख्वाब
गुलाबी रोशनी की तरह तैर रहे हैं
और मुहूर्त भी
जिसमें तुम मुझे
अपने पास आने के लिए पुकार सको
वह पेड़ शरमाते हुए कितना हरा हो गया है
जिसके पीछे छिपते हुए
तुमने मुझे छुआ।
(पेंटिंग ः रवीन्द्र व्यास )
4 comments:
बहुत सुंदर....
really marvelous!
वह पेड़ शरमाते हुए कितना हरा हो गया है
जिसके पीछे छिपते हुए
तुमने मुझे छुआ।
उस छुवन की याद दिलाने का शुक्रिया।पेंटिंग चन्द्रमा की अंगूठी वाली रात की याद दिलाती सी। शानदार
और इतने नक्षत्र हैं
जिनके दुपट्टों में तुम्हारे ख्वाब
गुलाबी रोशनी की तरह तैर रहे हैं
बहुत रूमानी ख्याल है इस कविता में और इस बने चित्र के रंगों में ...बेहद सुंदर
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