Saturday, November 15, 2008

इति जैसा शब्द



हेमन्त शेष की कविता


नर्म और सुगंधमयी कोंपलों की तरह
फूट आती हैं नीली
कांपती हुई इच्छाएं
अनसुने दृश्यों और अनदेखी आवाज़ों के स्वागत में
प्रेम खोल देता है आत्मा की बंद खिड़की


वहां बिलकुल शब्दहीन
अोस से भरी हवाएं प्रवेश कर सकती हैं


देह की दीर्घा की हर चीज़
भीगी और मृदुल जान पड़ती है


बेचैन हाथों से
मृत्यु और काल का प्राचीन फाटक खोलकर
पूरी पृथ्वी पर बचे दो लोग आचमन के लिए
अलौकिक रोशनी से भरे तालाब की तरफ़ आते हैं


भय और आशंका की असंख्य लहरें गड्‍डमड्ड कर देती हैं स्पर्शों के बिम्ब


सिर्फ़ रात के आकाश की कलाई पर गुदा हुआ मिलता है
स्थायी हरा चंद्रमा
जिसके हर गुलाबी पत्थर पर लिखा वे
एक-दूसरे का नाम देखते हैं


वहां से झीने आलोक में डूब दिन उन्हें
जहाज़ों की तरह तैरते नज़र आते हैं
अनन्त दूरियां और विस्तारों तक जिन्हें ले जाते हैं आकांक्षा के पंख


शरीर में जागे हुए करोड़ों फूलों और
कुहरे में झिलमिलाते हुए जुगनूअों जैसी
मौलिक लिपि में
प्रेमीगण बार-बार लिखते हैं
संसार की सबसे प्राचीन त्रासद पटकथा


वे जिसकी बस
कांपती हुई नीली शुरूआत जानते हैं


इति जैसा कोई शब्द
प्रेम के शब्दकोश में नहीं होता।

(कवि के प्रति गहरा आभार प्रकट करते हुए और इस कविता के साथ अपनी पेंटिंग लगाकर कृतज्ञ महसूस करते हुए)

12 comments:

रंजू भाटिया said...

इति जैसा कोई शब्द
प्रेम के शब्दकोश में नहीं होता।

इतनी सुंदर कविता पढाने के लिए आभार ..चित्र भी बहुत अच्छा लगा इस रचना के साथ

पारुल "पुखराज" said...

chandramaa huraa aur sthaayii...phir ye bhi sach sa ...इति जैसा कोई शब्द
प्रेम के शब्दकोश में नहीं होता।

Bahadur Patel said...
This comment has been removed by the author.
Bahadur Patel said...

hemant ki kavita bahut achchhi hai . kai panktiyan to adbhut hai. padhakar deh ki dirgha ki har chiz bhigi aur mrdul jan padati hai. kavita padhawane ke liye dhanywad.

एस. बी. सिंह said...

प्रेम खोल देता है आत्मा की बंद खिड़की.....

और
.....
देह की दीर्घा की हर चीज़
भीगी और मृदुल जान पड़ती है


सुंदर अति सुंदर कविता भी और चित्र भी

अजित वडनेरकर said...
This comment has been removed by the author.
अजित वडनेरकर said...

शब्दों को हरा कोना मिला और कविता को ठौर...
रंगों की आभा में काव्य भी कृतज्ञ होता है और कवि को भी होना चाहिए रवीन्द्र भाई...
कुछ समझे आप ?

अजित वडनेरकर said...
This comment has been removed by the author.
Ek ziddi dhun said...

painting dil ko bha gayi hai

Bahadur Patel said...

ravindra bhai mere blog par bhi padharen.

cartoonist ABHISHEK said...

इति जैसा कोई शब्द
प्रेम के शब्दकोश में नहीं होता
vakai tum bahut gahre or antarman ko chhoo lene wale kavi ho.

ravindra vyas said...

अभिषेकजी, यह कविता हेमन्त शेष की है।