Saturday, March 14, 2009

फलसफे में फनां तीन फनकारों की फनकारी











इंदौर (मध्यप्रदेश) के एक ख्यात फोटोग्राफर हैं प्रवीण रावत। कहते हैं- ईश्वर ने सृष्टि की रचना की है और मैं अपनी फोटोग्राफी के जरिये उसी सृष्टि की नकल करने का कलात्मक दुस्साहस करता हूं। मैं उसकी सृष्टि की सुंदर प्रकृति का संयोजन बदल कर अपनी कलात्मक सृष्टि पैदा करता हूं। शहर के ही दूसरे ख्यात फोटोग्राफर उपेंद्र उपाध्याय कहते हैं ईश्वर ही सत्य है और प्रकाश उसकी छाया। मैं उसी छाया के साथ खेलते हुए अपनी फोटोग्राफी करता हूं। जबकि इन्ही के साथी और उज्जैन के चित्रकार अक्षय आमेरिया कहते हैं-मैं अपनी चित्रकारी में एक अंतर्यात्रा करते रहता हूं और अपने को ही पा जाने की प्रतीक्षा करता हूं। यह मेरी खोज नहीं, एक अनवरत यात्रा है जिसमें मुझको मेरी ही यात्रा के पड़ाव और झलक दिखाई देती हैं।
जाहिर है इन तीनों कलाकारों में यह समानता है कि वे अपने एक खास फलसफे के साथ अपने काम को लेकर प्रस्तुत हो रहे हैं। ये एक साथ इकट्ठा हुए और तय किया कि तीनों मिलकर अपने-अपने काम प्रदर्शित करेंगे। हासिल ये हुआ कि इन तीनों की मिली-जुली प्रदर्शनी मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में 18 से 24 मार्च तक लगेगी। इनमें श्री रावत के 35 फोटोग्राफ्स, श्री आमेरिया के 15 अमूर्त चित्र और श्री उपाध्याय के 40 रंगीन फोटोग्राफ्स शामिल हैं। ये अपने फलसफे की फनकारी में फनां होकर फन दिखाने को तैयार हैं।
एक ऐसे समय में जब दुनिया चारों अोर से तमाम रंगों की चकाचौंध से अचंभित है तब किसी फोटोग्राफर का काले-सफेद रंग में काम करना साहसिक भी है और आंखों को राहत देने वाला भी क्योंकि यहां रंगों का हमला नहीं बल्कि काले रंग की आत्मा में प्रेम से झांक कर उसी से एक इंद्रधनुष रचने की प्रबल इच्छा भी है। इंद्रधनुष भी नहीं बल्कि प्रवीणधनुष। क्योंकि इस धनुष में प्रवीण के काले की ही अलग अलग अप्रतिम छटाएं हैं। उनके खींचे चित्रों में काले-सफेद की एक ऐसी आत्मीय दुनिया है जिसमें पांचे खेलती ग्रामीण लड़कियां, गोबर से अोटला लीपती या पानी भरने जाती महिलाएं हैं लेकिन ये सब उस सादगीभरे ग्रामीण सौंदर्य में जीवंत हैं जो बहधा अनदेखा किया जाता रहा है। वे कहते हैं मैं विरोधाभास की विविधताअों (कॉन्ट्रास्ट वैरिएशंस) के जरिए अलग अलग विषयों को शेप, लाइन, लाइट और टेक्स्चर से अभिव्यक्त करता हूं क्योंकि ये ही तत्व मिलकर किसी फोटो को दर्शनीय बनाते हैं। एक बार काले रंग को समझने पर वह काला नहीं रहता और फिर हमें उसके विभिन्न शेड्स समझ में आने लगते हैं। मेरे चित्र काले के विभिन्न जीवंत और कलात्मक शेड्स ही हैं।
ख्यात फोटोग्राफर उपेंद्र् उपाध्याय के रंगीन फोटो देखकर यह सहज ही कहा जा सकता है कि उनका सारा जोर स्पंदन पर है। वे लाइट और टोनल इफेक्ट के जरिये अपने फोटो में एक खास तरह के पैटर्न को रचते हैं। अक्सर यह पैटर्न लयात्मक होता है। इसी से उनका कोई फोटो प्रकृति की सुंदर छटा को हमारे लिए ऐसे उपलब्ध करता है कि हमारी देखी हुई चीजें ही फिर से नई और अलौकिक जान पड़ती हैं। जल हो, वायु हो, अग्नि, आकाश हो या प्रकृति का कोई हसीन नजारा वे अपने फोटो के जरिये स्पंदन ही पैदा करते हैं। खास विचार संचालित होकर खींचे गए फोटो में वे पंच तत्व का गहरा बोध कराते हैं। वे कहते हैं मैं हमारे इस ब्रम्हांड मैं फैले विजुअल्स मैसेजेस को ही कैद कर लोगों तक पहुंचाने की कोशिश करता हूं। उदाहरण के लिए यदि मैं निर्मल पारदर्शी जल को दिखाता हूं तो इसका अर्थ है कि जीवन के हर क्षेत्र में हमें पारदर्शिता रखना चाहिए। काम में, रिश्तों में और खुद अपने से भी पारदर्शिता रखना चाहिए। मैं सिर्फ इतना चाहता हूं कि प्रकृति के स्पर्श से मुझमें जो स्पंदन पैदा होता है वह मेरे फोटो को देखने वाले दर्शक को भी महसूस हो। प्रकृति में बिखरे कलर्स आफ लाइफ को बहुत धैर्य के साथ देखने की जरूरत है। उनके चित्रों की दुनिया खास पैटर्न, लय और रंगों से धड़कती दुनिया है।
उज्जैन के चित्रकार अक्षय आमेरिया ने एक्रिलिक रंगों में 15 चित्र बनाए हैं। इन्हें इनरस्केप शीर्षक से एक दूसरे से जोड़ दिया है। वे कहते हैं- पहले के चित्र अंदर से बाहर की यात्रा के थे और ये नए चित्र बाहर से भीतर की यात्रा के साक्ष्य हैं। ये चित्र पहली ही नजर में भौतिक और लौकिक लक्षणों और चिन्हों को तजने का अहसास कराते हैं। ये चित्र बाहरी यथार्थ से नहीं, बल्कि भीतरी यथार्थ से ज्यादा प्रतिकृत होते हैं। ये भीतर की यात्रा में चलने, या फिर ठिठक कर रूकने की और सोचने-समझने की बात करते हैं। यहां अपने से ही एक संवाद है। अपने को ही जानने-बूझने की विधियां हैं। इसीलिए इनमें थोड़ी दूर तक जाती लाइनें और फिर टूटना है। फिर रूककर फिर चलना है। कहीं पड़ाव है और वे इसिलए हैं कि किसी लम्हे में अपने को पाने की उत्फुल्लता है जो कहीं कहीं रंगीन धब्बों में प्रकट होती है और कहीं अपने को ही रचे जाने की प्रतीक्षा का काला-भूरा पत्थर भी है। और यह सब काले-ग्रे के अनंत के विस्तार में है। यानी जिस तरह से एक पत्ती किसी नीरवता में किसी नक्षत्र से बात करती है ठीक उसी तरह अक्षय का स्व अनंत में किसी लम्हें से संवादरत है। जाहिर है यह सब एक शांत क्षण में ही घटित हो सकता था इसलिए यहां रंगों का घमासान नहीं, बल्कि दो रंगों की परस्परता में एक शांत स्पेस जीवंत हो उठती है। इसी में हम अपने को पाते हैं।


इमेजेस-


1. प्रवीण रावत का फोटो जीवनचक्र
2. उपेंद्र उपाध्याय का फोटो जल
3. अक्षय आमेरिया का इनरस्केप
बाएं उपेंद्र उपाध्याय, दाएं प्रवीण रावत और ऊपर अक्षय आमेरिया


9 comments:

अजित वडनेरकर said...

शानदार काम है।
परिचय के लिए शुक्रिया...

नीरज गोस्वामी said...

लाजवाब चित्र...लेकिन ये खींचे कैसे हैं?...शुक्रिया आपका जानकारी के लिए.

नीरज

ओम आर्य said...

I dont have the understanding of images and paintings. when it looks good to me, I say it good.
But here the philosophy,you have described has provided some learning to me. Thanks

Ek ziddi dhun said...

ये फोटो लाजवाब हैं

कुमार अम्‍बुज said...

रवि, जब भी समय मिलता है मैं तुम्‍हारे ब्‍लॉग पर जरूर ही जाता हूं और पिछले दो तीन महीनों से मुझे कभी निराशा नहीं हुई। तुमने कला की दुनिया पर विमर्श को अपना मुख्‍य विषय बना लिया है, यह कितने संतोष की बात है। तुम इस पर आत्‍मीय गद्य लिख रहे हो, यह मेरे लिए प्रसन्‍नता का कारण है। मैं इसी खुशी में तुम्‍हें यह कमेण्‍ट लिख रहा हूँ।

ravindra vyas said...

अंबुजजी, कोशिश तो कर रहा हूं कि कला पर कुछ परिचयात्मक सी टिप्पणियां लिख सकूं। आप को पसंद आ रही हैं, यह मेरे लिए संतोष की बात है। बहुत बहुत शुक्रिया। इधर पिछले दिनों एक नई सिरीज पर पेंटिंग्स कर रहा हूं। जल्द ही आपको देखे को मिलेंगी।

Bahadur Patel said...

ravindra bhai bahut badhiya.
tino sathiyon ko badhai.

Ashok Pande said...

बहुत सुन्दर चयन और बढ़िया परिचयात्मक आलेख. शुक्रिया रवीन्द्र भाई!

प्रदीप कांत said...

Thanks that you have introduced us with such a nice work of these three artists.