Tuesday, March 10, 2009

बचपन की नदी, कछुए और सुंदर दिनों की याद







हम भागते हैं और हांफते हैं। एक हवस में, एक लालच में। जल्द से जल्द सब कुछ हासिल करने की हमारी तमन्ना हमें दौड़ाती है। लेकिन इसी दौड़ के आखिर में हम पाते हैं कि हमने अपनी जिंदगी की खूबसूरती को हमेशा हमेशा के लिए खो दिया है। तब हमारे पास सिर्फ कुछ दुःख, कुछ अवसाद और बहुत सारा अकेलापन बचा रह जाता है। शहर के युवा चित्रकार आलोक शर्मा के चित्रों को देखना अपने को ही दौड़ते-हांफते देखना है। वे अपने चित्रों की नई सीरीज स्टोरी रिटोल्ड में कछुए और खरगोश की एक पुरानी कहनी को चित्रमय अर्थ देते हैं। साथ ही वे एक अन्य सीरीज दे आर स्टील अराउंड में बचपन की स्मृतियों की अोर लौटते हैं और बताते हैं कि ये मूल्यवान यादें ही मनुष्य को मनुष्य बनाए रखती हैं। इसीलिए मनुष्य इन यादों की डोर के सहारे जिंदगी की नदी में भी तैरते रहता है। उन्हें हाल ही में इंदौर में चित्रकार मीरा गुप्ता ने उभरते कलाकार के रूप में सम्मानित किया।
आलोक की दिल्ली में एकल नुमाइश जारी है। उन्होंने कहा-पुरस्कार मिलने के मायने हैं कि एक चित्रकार के रूप में आपके काम को पसंद किया जा रहा है, और यह भी कि आपने कुछ कामयाबी हासिल की है। लगातार चित्र बनाते बनाते ही मैं यह महसूस करता हूं कि हां, अब कुछ मनमाफिक बन रहा है। आठ-दस साल लगातार काम करते हुए एक मुकाम पर लगता है कुछ काबिल बन रहे हैं। मैं अक्सर बचपन में लौटता हूं। मुझे अपने बचपन की नदी, नाव, मछलियां और खरगोश याद आते हैं। पीछे जाना हमेशा अच्छा लगता है। लेकिन मैं पीछे लौटकर पुरानी स्मृतियों और कहानियों आज के दौर के अर्थ देने की कोशिश करता हूं। इन्हें रूपाकारों में ढालना चुनौती होती है लेकिन डूबकर काम करता हूं तो यह मेरे संभव हो जाता है।
आलोक के चित्रों में एक कछुए के ऊपर से आदमी तेजी से उड़ता दिखाया गया है। वह खरगोश है जो सबकुछ हासिल करने की दौड़ में है लेकिन जीतता अंततः कछुआ है। आलोक कहते हैं इस दौड़ में हम अपनी तारों भरी रातें और चमकीले दिन भूल जाते हैं। छोटी छोटी खुशियों को भूल जाते हैं। आलोक ने अपनी एक पेंटिंग में आदमी को नदी में तैरते दिखाया है जिसके आसपास कागज की नावें तैर रही हैं। वे कहते हैं बचपन हमारे जीवन में बार बार लौटता है और बताता है कि हमें अपनी सबसे कोमल स्मतियों को कभी नहीं भूलना चाहिए क्योंकि ये ही हमारे जीवन को नया अर्थ और भाव देती हैं और जीने को कुछ सहने लायक बनाती हैं।
आलोक ने ड्रीम सिरीज भी की है जिसके चित्र अपने खूबसूरत नीले-जामुनी और लाल रंगों और सुंदर आकृतियों के साथ मन को छू जाते हैं। उनकी यह सिरीज सपने की तरह जिंदगी में धड़कते सुंदर दिनों की याद दिलाती हैं। उनकी इन पेंटिंग्स को देखना एक सपने में से गुजरने जैसा विरल अनुभव है। उनकी पेंटिंग्स हमसे ही हमारी एक आत्मीय मुलाकात कराती है और कहती हैं कि कब से तुम अपने से ही नहीं मिले। इन रूपों को देखो, इन रंगों को देखो औऱ अपने दिनों को याद करते हुए अपने को ही पा जाअो। भागना नहीं, रूककर महसूस करना ही जिंदगी का असल मर्म है।

6 comments:

अजित वडनेरकर said...

समझदारी भरी प्रतीकात्मकता। लोक की ज़मीन से जुड़ना ही कला को सार्थक बनाता है। फिर आप चाहे जितनी भी "भीषण" प्रयोगधर्मिता के प्रतिमान अपनी कला में गढ़ते रहें, सब कुछ सहज और सम्प्रेष्य लगता है। जबर्दस्ती का बुद्धिवाद जो कला जगत में फैला हुआ है वहां रंग और रेखाएं अक्सर इसीलिए बेमानी से लगते हैं क्योंकि उनमें "लोक" कहीं नजर नहीं आता।
चित्रकार को बधाई। आपका आभार।
रंगपर्व पर मंगलकामनाएं...
जै जै

Udan Tashtari said...

बहुत अच्छी सीख चित्रों के माध्यम से:


होली महापर्व की बहुत बहुत बधाई एवं मुबारक़बाद !!!

दर्पण साह said...

in paintings ko dekh aur post padh mujhe dwij ji ke saath kachue aur khargosh ke vishya me hui vartalaap yaad ho aie.yaha pe uska sandarbh prasangik na hoga. par jo rachnaein kuch purana yaad dilati hai wo 'most of the time' acchi hi hoti hai..

...bahut badhiya.

Ek ziddi dhun said...

ve sundar chamkeele aur udasi bhare din

Science Bloggers Association said...

बचपन की बात ही निराली है। उसकी हरबात एक जादुई एहसास होता है।

होली की हार्दिक शुभकामनाऍं।

मुनीश ( munish ) said...

my best wishes to the painter ,but if he removes his moustache he 'll be looking 15 years younger !