Thursday, April 2, 2009

आकार लेते शहरी दबाव और प्रकृति के उपहार




वहां हर चीज सांस ले रही थी। धीमे-धीमे। अपनी ही लय में। पेड़ों पर अपने चमकीले पंख फैलाए धूप खिली रहती थी, उन पर ठहरते और उड़ते पक्षी। खिलते-झरते फूल। पत्तियां, पत्तियों को हौले-हौले उड़ाती हवाएं। और इन सबके बीच सांस लेते कई तरह के कीट-पतंगे। इतना सुंदर प्राकृतिक वातावरण कि मैंने इसे ही अपने मूर्तिशिल्प का आधार बनाया। मैं जिस पर्यावरण में मंत्रमुग्ध थी, मैंने उसे रचने की एक छोटी-सी कोशिश की। यह कीट-पतंगों का एक घरौंदा था। इसमें झरती पत्तियां थीं, अपनी लय में सरकते कीट-पतंगे थे। एक ऐसा समूचा संसार जो हमारे होने को एक मायने देता है। कुछ इसी तरह की भावनाएं व्यक्त कीं युवा शिल्पकार मुदिता भंडारी ने। वे एक तरफ शहरी दबाव तो दूसरी तरफ प्रकति के उपहार को अपनी कल्पना से जीवंत आकार दे रही हैं।
वे हाल ही में तरूमित्रा (पटना) में ललित कला अकादमी, नईदिल्ली द्वारा आयोजित एक नेशनल कैम्प में शिरकत करके 31 मार्च को इंदौर लौटी हैं। यह कैम्प 20 से 29 मार्च तक था। तरूमित्रा पटना से बाहर एक खूबसूरत पर्यावरणीय संरक्षित इलाका है। मुदिता ने अपना यह मूर्तिशिल्प यहां तीन-चार दिन में बनाया, फिर इस शिल्प को पकाने के लिए भट्टी बनाई और धीमी आंच में अपनी इस कलात्मकता को पक्का लेकिन स्पंदित आकार दिया। अपने घर बातचीत करते हुए मुदिता बताती हैं कि तरुमित्रा ने इतना अच्छा माहौल मिला, इसकी कल्पना नहीं की थी। घना जंगल, चारों तरफ हरियाली और तालाब, जीव-जंतु। हमने वहां बनी झोपडि़यों में काम किया। यहां इतनी संवेदनशीलता है कि झरती पत्तियों तक को नहीं बुहारा जाता क्योंकि इन पत्तियों के नीचे धडकता है कीड़े-मकोड़ों का एक पूरा संसार। ये पत्तियां सूखते हुए, खत्म होते हुए यहीं के लिए खाद बनकर फिर किसी पेड़ से फूटकर हरी होकर चमकने लगती हैं। हालांकि मुदिता पिछले कुछ सालों से शहरी अनुभवों को लेकर लगातार मूर्तिशिल्प बना रही हैं। वे कहती हैं मैं शहर की आपधापी, तनाव और कई तरह के दबावों को गहरे महसूस करती हूं। शहर में कई तरह की स्पेसेस को अपने मूर्तिशिल्प में आकार देती हूं। इसीलिए उनके मूर्तिशिल्प में शहरों के शोर-शराबे के बीच साइलेंट कार्नर्स मिल जाएंगे तो सड़कों का धुमावदार और उलझा हुआ जंगल मिल जाएगा। वे इन आकारों के साथ सिकुड़ते जीवन और खुले आसमान की चाह को खूबसूरती से आकार देती हैं। नो वेयर टु गो मूर्तिशिल्प तो इतना मार्मिक है जिसमें उन्होंने ऐसी स्पेस क्रिएट की है कि लोगों का चलना दुभर हो गया है और ऊपर आदमी को लटका दिखाया गया है। इस तरह वे एक शहरी विडम्बना को खूबी से अभिव्यक्त कर देती हैं। यही नहीं, उनकी वाटर सिरीज में पानी के संस्मरण और स्मृतियां उनकी लय, गति और बिम्ब के साथ जीवंत मिल जाएंगे।
मुदिता ने एमएस यूनिवर्सिटी बड़ौदा से कला की शिक्षा हासिल की और वहीं 2001 से लेकर 2004 तक पढ़ाया भी। वे कहती हैं मैंने पाया की पढ़ाते हुए आप ज्यादा सीखते हैं और युवतर छात्रों से इंटरएक्शन करते हुए आपका दृष्टिकोण भी कुछ साफ होता है। आप एक ताजगी से अपने काम को नए सिरे से जानने-समझने लगते हैं। उन्होंने अपनी शुरूआती कला शिक्षा शांतिनिकेतन में ली, लिहाजा उनके मूर्तिशिल्प में एक रोमेंटिसिज्म और प्रकृति के उदात्त बिम्बों की झलक भी देखी जा सकती है। इसीलिए उनके मूर्तिशिल्प में घटते-बढ़ते चंद्रमा से लेकर पेड़ों को निहारा जा सकता है। वे सिरेमिक माध्यम में सिद्धहस्त हैं।
मुदिता दो एकल प्रदर्शनियां कर चुकी हैं और कुछ समूह प्रदर्शनियों में हिस्सेदारी। वे कई प्रतिष्ठित कैम्प में शामिल हो चुकी हैं और उन्हें कुछ स्कॉलरशिप्स भी हासिल हैं। वे दिल्ली में दिल्ली ब्ल्यू पॉटरी ट्रस्ट और संस्कृति फाउंडेशन द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी में शिरकत कर चुकी हैं। यह प्रदर्शनी दिल्ली की विजुअल आर्ट
गैलरी, इंडिया हेबीटाट सेंटर में 22 से 27 फरवरी-2009 में लग चुकी हैं। ध्रुव मिस्त्री और हिम्मत शाह जैसे प्रतिष्ठित शिल्पकारों से प्रभावित मुदिता कहती हैं कि समय समय पर मेरे मूर्तिशिल्पों का विषय बदलता रहता है लेकिन पिछले कुछ सालों से मैं शहरी अनुभवों के आधार पर ही मूर्तिशिल्प ज्यादा कर रही हूं। उनमें जगह, समय और उससे जुड़ी भावनाएं अभिव्यक्त होती रहती हैं।

5 comments:

डॉ .अनुराग said...

दिलचस्प !

संध्या आर्य said...

khafi khubsurat jagah se wakif karawaya...... thanks alot.....prakriti hamesha hi manohari hoti hai.......

विधुल्लता said...

शिल्प विधा में मूर्ति शिल्प सबसे कठिन विधा है...मुदिता को बधाई ..साथ ही और अधिक उनके उज्जवल भविष्य के लिए ....एक बात और उनके शिल्प की तरह -अनुरूप आपकी लेखन द्वारा कहने -बताने की विधा ..वाकई कलात्मक है ...पहले आपको बधाई,

संगीता पुरी said...

जानकारी बहुत अच्‍छी लगी ...

ravindra vyas said...

aap sabhi ka shukriya!