Friday, April 17, 2009

नजारों से नजरिये तक







इंदौर के चित्रकार-कहानीकार प्रभु जोशी के नए चित्रों को देखकर यह सहज ही कहा जा सकता है कि लैंडस्केप के प्रति उनका फेसिनेशन बरकरार है। विषयों की विविधता और रंग बहुलता के बावजूद उनके नए काम इसलिए सौंदर्यपूर्ण हैं क्योंकि इनमें उनकी पुरानी मनोहारी रंग-योजना और रंगों को बरतने की जादुई तरकीब का कमाल देखा जा सकता है। इस बार उन्होंने वाटर कलर्स का साथ छोड़कर मिक्स मीडिया में काम किए हैं। उनकी इस 12 वीं एकल नुमाइश का बुधवार को उद्घाटन किया ख्यात पत्रकार-चित्रकार-फिल्ममेकर प्रीतीश नंदी ने। इसमें उनके 14 शामिल हैं जो उन्होंने कैनवास पर मिक्स मीडिया में बनाए हैं।
उनके नए चित्रों की दो-तीन खासियतें तुरंत ध्यान खींचती हैं। पहली तो यही कि पहले वे सिर्फ खूबसूरत प्राकृतिक नजारों के चित्रकार थे जिसमें प्रकृति की कोई छटा अपने दिलकश अंदाज के साथ प्रकट होती थी लेकिन इस बार के चित्र उनके नजरिये का पता भी देते हैं। इस बार उनके चित्रों में खंडित समय, स्मृति की पगडंडी पर बचपन के दिन और स्मृति भंग की परछाइयां साफ देखी जा सकती हैं। मिसाल के तौर पर उनके एक चित्र में खूबसूरत लैंडस्केप के बीच एक मस्तिष्क है। और उस मस्तिष्क में भी रंगों के कई टुकड़े हैं जो वस्तुतः समय के ही टुकड़े हैं। वे कहते भी हैं कि मेरे ये चार चित्र नवगीतकार स्वर्गीय नईम को ट्रिब्यूट हैं। हम एक खंडित समय में ही रह रहे हैं जहां स्मृतियां हैं स्मृति भंग है और स्मृति का लोप भी है।
उनके एक चित्र में स्मृतियों का धुंधला स्मरण है जहां बचपन के कपड़े सूख रहे हैं यानी वे स्मृति की पगडंडी से गुजरते हुए अपने अतीत की स्मृतियों को रूपाकारों में जीवंत कर रहे हैं। यह भूलने के विरूद्ध याद रखने की रंग-यात्रा भी है। इसी तरह उनके अन्य चित्रों में स्मृतियों की अवसादपूर्ण मौजूदगी भी महसूस की जा सकती है जिसमें जंगलों के कटने का एक दृश्य है और जंगलों के कटने का एक अर्थ स्मृतियों का धराशायी होना भी है। इस पीड़ाजनक अनुभव को वे अपने सिद्ध कला-कौशल से रचते हैं। इसके अलावा उन्होंने कालिदास रचित कुमार संभव को ध्यान में रखते हुए शिव के जो चित्र रचे हैं। एक चित्र में बहुत ही खूबसूरती से उन्होंने शिव के त्रिशूल, कमर से उतारी गई छाल, पार्वती की साड़ी और माथे से हटाकर एक तरफ रखा गया चंद्रमा चित्रित किया है तो दूसरे चित्र में शिव की पगथलियों के सामने पार्वती की पगथलियां बनाई हैं। एक प्रीतीशनंदी का व्यक्तिचित्र भी उन्होने बनाया है जिसमें आंख हरी, सिर लाल और होंठ गुलाबी बनाए हैं।
लेकिन विषय वैविध्य होने के बावजूद इन तमाम चित्रों को देखकर बाआसानी कहा जा सकता है कि ये एक ही चित्रकार की कृतियां हैं। इसका कारण है कि उन्होने इसमें अपनी पुरानी रंग योजना, तकनीक और रंगों के वापरने के अपने चिरपरिचित ढंग को बरकरार रखा है। यानी उन्होंने एक्रिलिक और आइल कलर को पानी पानी कर दिया है इसी कारण उनके इन नए चित्रों में वह रंगों की तरलता और सहज बहाव और उस पर असाधारण नियंत्रण देखा जा सकता है। यह उनकी लंबी रियाज का ही प्रतिफल है कि उनके चित्रों का कुल प्रभाव लगभग जादुई है और दर्शाता है कि अपने मीडियम पर उनका नियंत्रण अंसदिग्ध है। इसके अलावा कहीं कही बहाव को तोड़ते उनके सायास टेक्सचर और कम्पोजिशंस के साथ लैंडस्केप के पर्सपेक्टिव खासे आकर्षित करते हैं। वे कहते हैं मैंने इसमें कहींकहीं इंक का भी इस्तेमाल किया है। वे कहते हैं कि तमाम दुःखद स्मृतियों और पीडा़दायी अनुभवों के बावजूद कला से सौंदर्य को बाहर नहीं किया जा सकता है। सौंदर्य उसका मूलतत्व है लिहाजा ये चित्र अवसादपूर्ण होकर भी सुंदर हैं।
इसलिए इनमें खंडित समय और स्मृति भंग के चित्र के साथ ही बहती नदी, कोहरे में लिपटे पहाड़ और अपने में ही मगन पेड़ और खुला आसमान दिल लुभाते हैं।

2 comments:

एस. बी. सिंह said...

प्रभु जोशी जी से परिचय कराने के लिए धन्यवाद। आपके ब्लॉग पर आते आते चित्रों के बारे में समझ में इजाफा हुआ है और चित्रकारों के बारे में भी।

प्रदीप कांत said...

उनके एक चित्र में स्मृतियों का धुंधला स्मरण है जहां बचपन के कपड़े सूख रहे हैं यानी वे स्मृति की पगडंडी से गुजरते हुए अपने अतीत की स्मृतियों को रूपाकारों में जीवंत कर रहे हैं। यह भूलने के विरूद्ध याद रखने की रंग-यात्रा भी है।

BADHIYA