Tuesday, October 21, 2008

बाहर फैलते पतझड़ से बेखबर


उसे पता नहीं था कि वह कब से वहीं खड़ी रह गई है, जहां वह उसे छोड़कर चला गया था।
वह पतझड़ के मौसम में खड़ी थी और उसके हाथों में जो छुअन बाकी रह गई थी वह उसके अंदर एक भरे-पूरे वसंत में खिलकर महक रही थी। इसी महकते वसंत की लचकती शाख पर वह अपने प्रेम का अधखिला फूल देख रही थी। वह उसके खिलने की आहट को सुनने के लिए बेताब थी। पतझड़ का कब से एक अटका पत्ता झरता हुआ उसके पैरों के पास आकर ठहर जाता है।
वापसी की राह को तकती उसकी आंखों में अब भी हरापन बाकी बचा था।
उसे अहसास नहीं था कि इसी हरेपन की रगड़ से उसके भीतर कुछ छिल जाएगा, छिन जाएगा, जिसकी जलन देर तक बनी रहेगी...
वह अब भी वहीं खड़ी है।
अपने वसंत के साथ, अधखिले फूल की आहट को सुनने को बेताब।
बाहर फैलते पतझड़ से बेखबर...
(जैक वैट्रीआनो की पेंटिंग- रोज़)

10 comments:

शायदा said...

उसे वहीं खड़े रहना चाहिए...जब तक कि हरापन जिंदा है....जब तक कि सांस चलेती रहे। छोड़कर जाने वाले को वापस आने पर मायूसी न हो इसलिए भी उसका वहां खड़े र‍हना ज़रूरी है। वैसे भी कोई मायूस चेहरा इंतज़ार में थके चेहरे से ज्‍़यादा दयनीय हो सकता है...।

रंजू भाटिया said...

जब तक यह उम्मीद है तब तक यह हरियाली है इसको यूँ ही रहने देना चाहिए ..बढ़िया लगी यह

Ek ziddi dhun said...

`hamko is intzaar ka kuchh to sila mile..`

महेन said...

वहाँ खड़े रहना रूमानी भले ही हो प्रेक्टिकल तो कतई नहीं है जी।

एस. बी. सिंह said...

न कह साकी बहार आने के दिन हैं
जिग़र के दाग़ छिल जाने के दिन हैं।

अजित वडनेरकर said...

उसे आगे बढ़ना चाहिए ...खड़े रहने में न रुमानियत है और न ही सलाहियत।
हम तो इंतजार भी टहल-टहल कर करते हैं रवीन्द्र भाई:)))))))

पारुल "पुखराज" said...

bahut acchha hai ye!!!
kuch yaad aa gaya...na janey kab kahaa raha hogaa

बड़े हौले से उसने आज मेरा हाथ छोड़ा है
कि बरसों बाद मुझको आज मेरे साथ छोड़ा है।

कुमार अम्‍बुज said...

रवि,
तुम इस तरह गद्य लिखोगे तो तुम्‍हें जल्‍दी ही अब कहानियों में प्रवेश करना चाहिए। यह मेरा गंभीर प्रस्‍ताव हैं।

Bahadur Patel said...

kyon khadi ho is tarha
koun chhupa baitha hai ankhon ki putaliyon ke bich is tarha
andar ke parade ko koun kutar raha hai
sochane ki seema ke bhitar
lekin jeevan ke is sourmandal se bahar hai vah
vah kabhi nahi ayega
phir bhi ummid ka diya jalaye rakhana hoga.
Kumar Ambuj ki bat man lo ravindra.

कुमार अम्‍बुज said...

मैंने जो तुमसे फोन पर कहा, वह ध्‍यान रखना।
मैं तुमसे जीवन के बीचोंबीच खडे स्‍पंदित और घिरे हुए मनुष्‍य की अभिव्‍यक्ति की अपेक्षा कर रहा हूँ। चित्रों में भी और लेखन में भी।