मर्लिन मुनरो को याद करते हुए...
हॉलीवुड एक ऐसी जगह है जहां चुंबन के लिए आपको हजारों डॉलर्स मिल जाएंगे लेकिन आत्मा के लिए सिर्फ पचास सेंट्स।
जानती हूं, मैं कैलेंडर पर ही जिंदा रहूंगी, समय में कभी नहीं।-मर्लिन मुनरो
बरसों पहले इंदौर के एक टॉकीज के चुभते पटियों पर बैठकर मैंने मर्लिन मुनरो की फिल्म देखी थी औऱ मेरा यकीन करिये की उसकी जान लेवा अदाअों और बला की खूबसूरती को टकटकी बांधे देखते हुए मैं किसी बादल पर सवार था। मैं जब अंदर से अपने को टटोलता हूं तो पाता हूं कि खूबसूरती हमेशा वासना नहीं जगाती बल्कि वह आपमें बुनियादी बदलाव करती है जो किसी भी सौंदर्यबोध को समझने-बूझने की तमीज भी पैदा करती है और उसको मांजती भी चलती है। ईश्वर मुझे अलौकिकता से बचाए, मैंने अपने सौंदर्यबोध के लिए अप्सराअों की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा है। उनसे ज्यादा सुंदर, हंसती-खिलखिलाती, रोती-तड़पती स्त्रियां मुझे इसी जीवन में अपने आसपास ही नसीब हुई हैं। वह चाहे फिल्म में हो, कविता में हो, कहानी-उपन्यासों में हो या फिर मेरे अपने ही आंगन में अपनी महक से मुझे बावला करती हुई...ये स्त्रियां हमेशा मुझे बुरी नजरों से बचाए रखती हैं और मुझे इस काबिल बनाती हैं कि स्त्री से प्रेम कर सकूं।
और मर्लिन भी एक स्त्री थी। हॉलीवुड में उसके जलवों के अनेक किस्से हैं। उसके प्रेम और दुःख के भी अनेक किस्से हैं। अपने १६ साल के करियर में उसने २९ प्रमुख फिल्मों में काम किया, मॉडलिंग की, गायन किया और दौलत और शोहरत हासिल की। अजगर ने ठीक ही लिखा है कि बहुत कम लोग ऐसे होंगे जिन्हें मर्लिन से, उसकी तस्वीरों से, उसकी अदाओं से कभी न कभी प्यार न हुआ होगा। बहुत कम औरतें होंगी जिनके अंदर एक मर्लिन मुनरो नहीं छिपी होगी। उससे बचना कितना मुश्किल है लेकिन मर्लिन ऐसी स्त्री भी है जिस पर चुंबन के लिए तो डॉलर्स की बारिश होती रही लेकिन प्रेम पाने के लिए उसकी आत्मा हमेशा जिदंगी के जलते बियाबान में भटकती रही...इसीलिए तो एक जून १९२६ को लॉस एंजिल्स के एक जनरल हॉस्पिटल मैं पैदा हुई यह किलकारी ४ अगस्त १९६४ को अपने बिस्तर पर निर्वस्त्र अौंधे मुंह पड़ी मिलती है। अपनी एक साथ चमकीली औऱ अंधेरी भरी दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कहती हुई...एक जून १९२६ से लेकर ४ अगस्त १९६४ का जो दरमियानी समय है। वह एक अंतहीन कहानी है दोस्तों। इसमें सबकुछ है-नाखुश बचपन, अंदर से तोड़ देने वाला संघर्ष, फिर कामयाबी, चकाचौंध, किसी के लिए भी ईर्षा पैदा करने वाली लोकप्रियता, तीन शादियां औऱ कुछ प्रेम के किस्से। रिश्तों की टूटन और प्रेम की प्यास। फिर अंतहीन अवसादभरी काली रातें। और अंत में एक न खत्म होने वाली कहानी। उसके मरने के इतने सालों बाद भी यह अब तक रहस्य ही है कि उसने आत्महत्या की थी या उसकी हत्या की गई।
अपने कॉलेज के दिनों में मैंने एक मैग्जीन से मर्लिन के कैलेंडर का फोटो काटकर बहुत दिनों तक संभाल कर रखा था। अब वह कहीं खो गया है या फिर घर में टपकते बारिश के पानी में मेरी बहुत सारी किताबों के साथ गलकर सड़ चुका है जिसे रद्दी के साथ बाद में फेंक दिया गया था। कई बार सोचता हूं, कम से कम मेरे लिए तो मर्लिन एक तितली है जो कैलेंडर से बाहर निकलकर समय के आंगन में उड़ रही है। वे हमेशा समय में रहेंगी। आप जब जीवन की आपाधापी से हांफते हुए किसी पेड़ से थोड़ी देर के लिए पीठ टिकाएंगे तो पाएंगे कि आपके जेहन में भी उस तितली के पांव के निशान अोस की बूंदों की तरह चमक रहे हैं...
9 comments:
achha manushy lekhak yahee karta hai ki dignity ke saath dekhne -samjhne kee tameej paida karta hai.
`...ये स्त्रियां हमेशा मुझे बुरी नजरों से बचाए रखती हैं और मुझे इस काबिल बनाती हैं कि स्त्री से प्रेम कर सकूं।`
अच्छा लिखा।
जब भी कोई पुरुष मर्लिन मुनरो के सौंदर्य पर लिखता है तो मुझे स्वाभाविक लगता है, हैरानी नहीं होती। जब वह उसके जीवन, पीड़ा और अवसाद की बात करता है तो शक होने लगता है, कि क्या वास्तव में जैसा था उसे वैसा ही या उसके क़रीब समझा जा रहा है, और अंत में मैं इस बात का डिस्काउंट दे देती हूं कि दुख अवसाद और पीड़ा को समझने के लिए स्त्री या पुरुष नहीं बल्कि इंसान होना ज़्यादा ज़रूरी है। रवींद्र जी आपने जो लिखा वो एक संवेदनशील इंसान का लिखा है, जो छू जाने में सक्षम है।
तितलियां ही हमारे समय को और खुरदरा होने से बचाए हुए हैं.शुक्र है अपन अभी अंधे नहीं हुए.
सुन्दर स्केच लिखा आपने रवीन्द्र भाई! शायदा की बात से भी इत्तेफ़ाक है.
आपने कबाड़ख़ाने में मर्लिन के गाए गीतों की झलक सुनी या नहीं? लिंक ये रहा:
http://kabaadkhaana.blogspot.com/2008/02/blog-post_3848.html
After 4 days of no Internet connection, your article on Marlyn Munroe made a very nice reading.
Ravindraji, I think I like you more in articles.
Marlyn Munroe's life history had never touched me so much as now.
I think, it is sometimes just 1 or 2 words which do the magic.And that is what you did. Because as a woman I had unknowingly always worn blinkers while reading about her.Hence I had been indifferent.
Truly, true love can make so much of a difference in life.In India, we find commitments as well as reciprocity in love and marriage more easily.
In future I will try to be more considerate and understanding. - Sulabha Dhavalikar
ravindr jee aap sache sant hain-sanvedansil-sahirday to hai hi...kuchh baton se asahmat hote hue bhi aap ke najariye ko lekr meri yhi dharn bani hai. aapki yh tippani majedar aur touchy hai...munro ki tasvir bhi sundar
खूबसूरती हमेशा वासना नहीं जगाती बल्कि वह आपमें बुनियादी बदलाव करती है जो किसी भी सौंदर्यबोध को समझने-बूझने की तमीज भी पैदा करती है और उसको मांजती भी चलती है।
एक शेर याद आगया -
रंग आंखों के लिए बू है दिमागों के लिए ,
फूल को हाथ लगाने की जरुरत क्या है।
बहुत अच्छा स्केच
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