


ख्वाब जिंदगी को खूबसूरत बनाते हैं, गीत जिंदगी को मधुर। इसी वजह से जिंदगी जीने लायक बनती है। कुछ दुःख और संताप कम होते हैं। इस तरह वह कुछ सरस-सहज बनती है और कुछ मायने हासिल करती है। इंदौर की चित्रकार दंपत्ति आलोक शर्मा और मधु शर्मा अपने चित्रों में यही करते हैं। आलोक चित्रों में ख्वाब बुनते हैं और ख्वाबों में यादों के तागों से बंधे अपने बचपन के सुहाने दिन याद करते हैं। मधु प्रकृति में धड़कती हर चीज से बतियाती हैं और उनके सामूहिक गीत को चित्रित करती हैं। एक-दूसरे का हाथ थामे ये जिंदगी को ज्यादा सरस और सहज बनाने की राह पर हैं। सपनों पर आधारित इन दोनों के चित्रों की नुमाइश मुंबई की जहांगीर आर्ट गैलरी में एक अप्रैल से शुरू हो रही है। 7 अप्रैल तक जारी रहने वाली इस नुमाइश में आलोक के आइल में बनाए 18 और मधु के 16 चित्र शामिल हैं।
इनके घर पर चित्रों के बीच बातचीत करते हुए मधु कहती हैं कि हम कभी अकेले नहीं होते। इस कायनात की हर चीज हमसे बात करती है। जैसे हम धड़कते या महसूस करते हैं ठीक वैसे ही प्रकृति की हर चीज। पेड़, पौधे, नदी, सारे जीव-जंतु यानी पूरी प्रकृति में स्त्रीत्व और मातृत्व है। ये सब मिलकर हमारे जीवन को सुंदर बनाते हैं, उसके गीत को ज्यादा मधुर बनाते हैं। मैं प्रकृति के इसी मातृत्व भाव को, इसके मधुर गीतों को चित्रित करती हूं। सबकी अपनी भाषा और भाव हैं। गीत हैं। मैं इन्हें ध्यान से सुनती हूं और अपने को अकेला नहीं पाती।
मधु के चित्रों में पूरी प्रकृति का मानवीयकरण अपने अनोखे रूप में हुआ है। इसमें एक लय है। यही लय वह रूप बनती है जिसमें प्रकृति का समवेत गान है। वहां भेड़-बकरी या पेड़ मानवीय रूप धरते हैं। ये कभी बांसुरी बजाते या नृत्यरत दिखाई देते हैं। जैसे जिंदगी के नृत्य-संगीत में शामिल हों। और मधु यह सब अपने कैनवास पर इस तरह संभव करती हैं कि रूपाकारों के वैशिष्ट्य में और सार्थक रंग योजना में ये सपने जैसे लगते हैं। और इन्हें इतनी कलात्मक संवेदना के साथ चित्रित किया गया है कि इनमें कोई भेद नहीं रह जाता। सब एक जीवंत रूप में धड़कते हैं।
वे कहती हैं मेरी मिट्टी प्रकृति के इसी मर्म से बनती है। मैं प्रकृति की उर्वरा शक्ति, उसकी भावप्रवणता और उसके उदात्त भाव को रचती हूं। मैं इनसे बतियाती हूं और ये मुझे अपना प्रेम खुले हाथों से बांटते हैं। यही प्रेम मेरे चित्रों में अभिव्यक्त हुआ है।
आलोक ने स्टोरी रिटोल्ड, दे आर स्टील अराउंड मी और ड्रीम सेलर सीरीज के तहत चित्र बनाए हैं। ड्रीम सीरीज में वे अपने भोले और कोमल रूपाकारों में बचपन की स्मृति को जीवंत करते हैं। इन चित्रों में एक आदमी धागों से बंधी कुछ मछलियों लिए है औऱ एक भोली युवती अपने हाथ में फ्लावर पॉट लिए उसे निहार रही है। भाव यह है कि वह यादों में कहीं खोई है। जाहिर है मछलियों के जरिये वह व्यक्ति उसे उन ख्वाबों में ले जाता हैं जहां बचपन और तक की दुनिया की तमाम यादें हैं। वे इनमें नीले रंगों का प्रमुखता से कल्पनाशील इस्तेमाल कर एक सपनीली दुनिया का अहसास कराते हैं। चूंकि इन ख्वाबों में बचपन की यादें है लिहाजा सभी रूपाकार निश्छल चित्रित हैं। वे कहते हैं मैंने यहां मछलियों को स्मृति के धागों से बंधा चित्रित किया है। हमारे जीवन में यह होता है कि जब भी हम कभी कोई गुब्बारा, कागज से बनी चकरी, मछली या खरगोश या कोई खास तरह की गंध महसूस करते-देखते हैं तो हम अपने बचपन में लौट जाते हैं। ये यादें हमें ज्यादा संवेदनशील और मानवीय बनाती हैं। फिर मैं यह भी चित्रित करना चाहता था कि हमारे भीतर कहीं न कहीं बचपन हमेशा जिंदा रहता है। बस, वह किसी खास मौके, खास मनःस्थिति या प्रसंग में अचानक बाहर आ जाता है। हम हमेशा हमारे भीतर अपने बचपन को बचाए रखते हैं। बचपन के यही ख्वाब हमें बेहतर इंसान बनाए रखते हैं।
जाहिर है इन चित्रों के जरिये हम एक बार फिर ख्वाब बुनने लगते हैं और जिंदगी के गीत सुनने लगते हैं।